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________________ १५० विविध पूजासंग्रह नाग प्रथम. ॥ काव्यं ॥अगरमुख्य०॥१॥ निजगुणादयः॥२॥ ॥अंथ मंत्रः॥ ॥उँ ही श्री परम ॥ नीचैर्गोत्रबंधस्थानोछेदनाय धूपं य० ॥ खा०॥इति नीचैर्गोत्रबंधस्थानोछेदनार्थ धूपपूजा समाप्ता ॥४॥५५॥ ॥ अथ पंचम दीपकपूजा प्रारंनः॥ - ॥दोहा॥ ॥ कागप्रसंगे हंस नृप, बाण प्राण परिहार ॥ गंगाजल जलधि मले, नीच गण सुविचार ॥१॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ जुवढे कोश् रमशो नहीं रे ॥ ॥ए देशी ॥ ॥ फानसदीपक ज्योति धरी रे, पूजा रचुं मनो. हार॥प्रनुजी ॥ नीच कुले हवे नहीं रे रहुं रे॥ पूजा अरुचि जावे करी रे, नीच कुले अवतार ॥ प्र०॥१॥ तुज पागल नवि दीप धस्यो रे, नापिक हाथ मशाल ॥प्र॥मातंग जंगित जाति कही रे, काढे अशुचिखाल॥०॥२॥माली गोवाली कोली तेली रे, मोची ने शुचिकार ॥प्र०॥त्रण वनेचर पापीयो रे, दोय अफास विचार ॥ प्र॥३॥ वणी मग मादण रांक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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