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श्रीवीरविजयजीकृत चोसठप्रकारी पूजा. १३५ ॥ अथ तृतीय पुष्पपूजा प्रारंनः॥
॥ दोहा ॥ ॥ ए दश पयमि पापनी, पापे बंध करंत ॥त्रप्स दश पामे जीवडो, जिम अंशे पुण्यवंत ॥१॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ रहो रहो रे जादव
दो घमियां ॥ ए देशी ॥ ॥ रहो रहो रे रसन्नर दो घमियां, दो घमियां दिलसें श्रमीयां॥रहो॥ए आंकणी ॥कुसुमनी पूजा करी फल मागं, परमातम पाजं पमीयां ॥ रहो॥ पुण्य उदय त्रस नाम धरायो, अब तुम वार नहीं घमियां ॥ रहो ॥ १॥ विगडि पंचेंजि कहायो, प्रज्जु उलखाण हवे पमीयां ॥ रहो॥ बादर नाम जे नजरे देखे, उवेखे केम नजरे चमीयां ॥ रहो ॥२॥थ पर्याप्तो लब्धि करणे, चरणे श्रायो न विबमीयां ॥ रहो॥ एक तनु एक जीव कहावे, प्रत्येकमां पण अमे वमीयां ॥रहो॥३॥ दंतादिक तनु थिर थिर नामे,तहवी मन अमे थिर करीयां॥रहो॥ नानि उपर तनु शुज सहु देखे, तेणे तुम हृदयकमल धरीयां ॥रहो॥४॥ सरवने वाहो सुनगथी
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