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श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. १२५ ॥ अथ पंचम दीपकपूजा प्रारंनः ॥
॥ दोहा॥ ॥ मनमंदिर दीपक जिस्यो, दीपे जास विवेक ॥ तस तिरियायु नहीं कदा, थानकबंध अनेक ॥१॥ ॥ढाल पांचमी॥चोरी व्यसन निवारी ए॥ए देशी॥
॥दीपकपूजा जिन तणी, नित करतां हो अविवेक ते जाय के ॥ अविवेके करी आतमा, बंध पाडे हो तिरियंचनुश्राय के॥अज्ञानी पशु श्रातमा॥१॥ ए
आंकणी ॥ शीलरहित परवंचका, उपदेशे हो पोषे मिथ्यात के ॥ वणिज करे कूम तोलशु, मुख नाखे हो कुकर्मनी वात के ॥ अ॥२॥ वस्तु उत्तम हीण जातिशु, नेलवीने हो वेचे नादान के॥ माया कपट कूम शाखीयो, करे चोरी हो नित्य भारत ध्यान के ॥०॥३॥थश्चीरोली साधवी, शेठ सुंदर हो नंदन मणियार के ॥ अविवेके परजव लहे, गोहजाति हो डेडक अवतार के ॥ अ॥४॥कूम कलंक चमावतां, नील कापोत हो लेश्या परिणाम के ॥श्रीगुनवीरना निंदकी, तिरियायु हो बांधे एणे गम के॥ ॥५॥ ॥ काव्यं ॥ जवति दीप० ॥१॥शुचिमना ॥२॥
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