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________________ श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. १११ ॥अथ पंचम दीपकपूजा प्रारंजः॥ ॥ दोहा॥ ॥ संज्वलननी चोकमी, जब जाये तव गेह ॥ ज्ञानदीवो परगट हुवे, दीपकपूजा तेह ॥ १॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ चंप्रन जिनचंउमा रे॥ए देशी॥ ॥ जगदीपकनी श्रागले रे, दीपकनो उद्योत ॥ संज्वलनो ज्वलते थके रे, नाव दीपकनी ज्योत ॥ हो जिनजी ॥१॥ तेजे तरणिधी वमो रे, दोय शिखानो दीवडो रे, फलके केवल ज्योत ॥ ए बांकएणी ॥ बंध स्थिति पूरव परे रे, संज्वलनो तिग जाण ॥ बंध उदय सत्ता रहे रे, अनियहि गुणगण ॥ हो जि०॥ ते ॥२॥ लोन दिशा अति आकरी रे, नवमे बंध पलाय ॥ उदय ने सत्ता जाणीए रे, जे सूक्ष्मसंपराय ॥ हो जि० ॥ ते ॥ ३ ॥ साहिब श्रेणि संचयों रे, लोजनो खंड प्रचंड ॥ गुणगणां सरिखो करी रे, खेरव्यो खंडोखंग॥ हो जि०॥ ते ॥४॥ पद लगे गति देवनी रे, जलरेखा सम क्रोध ॥ नेत्रलता सम मानथी रे, चरम चरणनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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