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________________ श्रीवीरविजयजीकृत चोसवप्रकारी पूजा. एए ए० ॥ ४ ॥ तीस कोमाकोमी सागरु रे ॥ मि० ॥ लघु सातैया त्रिजाग ॥ बंध यशाता वेदनी रे ॥ मिणा हवे शाता सुविजाग रे || रंगी० ॥ ए० ॥ ५ ॥ पन्नर कोकाकोमी सागरु रे || मि० ॥ लघु दोय समय ते थिर ॥ गोयम संशय टालीयो रे || मि० ॥ जगवईमां शुजवीर रे || रंगी० ॥ ए० ॥ ६ ॥ ॥ ॥ काव्यं ॥ सुमनसां० ॥ १ ॥ समयसार० ॥ २ ॥ ॥ अथ मंत्रः ॥ ॥ ॐ ॐ श्री परम० ॥ वेदनीयबंध निवारणाय पुष्पाणि य० ॥ स्वा० ॥ इति वेदनीयबंध निवारणार्थं तृतीय पुष्पपूजा समाप्ता ॥ ३ ॥ १७ ॥ ॥ अथ चतुर्थ धूपपूजा प्रारंभः ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ उत्तराध्ययने थिति लघु, अंतरमुहूर्त्त कहाय ॥ पन्नवणामां बार ते, शाता बंध संपराय ॥ १ ॥ शातावेदनी बंधनं, गण प्रभु पुर धूप ॥ मित दुर्गंध दूरे टले, प्रगटे आत्मस्वरूप ॥ २ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ विमलाचल वेगे वधावो ॥ ए देशी ॥ ॥ चमासी पारणं यावे, करी विनति निज घर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003855
Book TitleVividh Puja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages512
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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