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अजीव सहह्या प्ररूप्या, अजीवकू जीव सहह्या प्ररू प्या, धर्मकू अधर्म अरु अधर्मकुं धर्म सह्या प्ररूप्या तथा साधुजीकों असाधु और असाधुकों साधु सद ह्या प्ररूप्या, तथा उत्तम पुरुष साधु मुनिराज महास तियांजीकी सेवा नक्ति यथाविधि मानतादिक नही करी.नही करावी, नहीअनुमोदी तथा असाधुवांकी सेवा नक्ति आदिक मानता पद कस्या. मुक्तिका मार्ग में संसारका मार्ग यावत् पञ्चीश मिथ्यात्व माहेला मिथ्यात्व सेव्या सेवाया अनुमोद्या मनेंकररी, वचनें करी, कायायेंकररी, पञ्चीश कषायसंबंधी, पच्चीश क्रिया संबंधि, तेत्रीश बाशातना संबंधि, ध्यानका उगणीश दोष, वंदनाका बत्रीश दोष, सामायिकका बत्रीश दोष, पोसहकाअढारा दोष, संबंधिमनें वचने कायायेंकरीजे कां पाप दोष लाग्या लगाया अनुमोद्या ते मुजे धि कार धिक्कार वारंवार मिहामि कुक्कडं ॥ महामो हनीय कर्मबंधका त्रीश स्थानककों मन वचन अरु कायासे सेव्या सेवाया अनुमोद्या, शीतकी नव वा डपाठ प्रवचन माताकी विराधनादिक तथा श्रावक का एकवीश गुण अरु बारा व्रतकी विराधनादि मन वचन यो कायासेंकरी करावी अनुमोदी तथा तीन
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