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(३३) साथ॥७॥श्रका नासन तत्त्व रमणता, विनयी कार जगानां री ॥स० ॥ अ० ॥ ॥ धन्ना एह पद विधिशुंसेवी, श्रात्मरंग नरानां रीसा ॥ ए॥ काव्यम् ॥ अतिश० ॥ मंत्रः॥ ॐ ही श्री पर॥ विनयाय ॥ जला ॥ यजाम ॥ इति ॥ १० ॥
॥ अथैकादश चारित्रपद पूजा प्रारंजः॥ ॥दोहा॥ चरण शरण जवजल तरण, चरण शरण सुख सार॥रंक महंत करे सही,सुरवर सेवाकार॥१॥ तीन जगतपति पद दिये,खादिक गुण गाय ॥ कविमल पंकपखारना, जय जय संयम राय ॥२॥
॥लगीलो नानिनंदनशं, लगीलो ॥ ए देशी॥ ॥राग सोरठ॥चरण पद मनरंग ॥ रे जीया ॥च॥ ए आंकणी ॥ आठ कर्मका संचकों जे, रिक्त करे - य नंग ॥च०॥चारित्र नाम निरुक्तं मान्यो, शव रमणीको संग ॥रे जी० ॥ च ॥१॥ षट्रखंमकेलं राज्य जेहनें,रमणी जोग उतंग॥चक्री संजम रसमें तीनो, चिद्घन राज अनंग ॥रे जी० ॥ च ॥२॥ बारे कषाय जरे जब कीनी, प्रगटे संयम चंग ॥
आठ कषाय गये अणुविरती, चारित्र मोह विरंग॥ रे जी० ॥ च ॥३॥ वर्ष संयमके सुखकी श्रेणी,
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