________________
( ३१ )
न० ॥ १२ ॥ काव्यं ॥ श्रतिशया० ॥ मंत्रः ॥ ॐ झी श्री परम० ॥ ज्ञानाय जला० ॥ य० ॥ इति ॥८॥ ॥ अथ नवम दर्शनपद पूजा प्रारंभः ॥
॥ दोहा ॥ तत्त्व पदारथ नव कहे, महावीर जगवान ॥ जो सर सद्भाव सें, सम्यग्दर्शी जान ॥ १ ॥ श्रद्धा विण नहि ज्ञान हे, तद विण चरण न होय ॥ चरण विना मुक्ती नही, उत्तरायणे जोय ॥ २ ॥
॥ निशिदिन जोखुं वाटडी, घेर श्रावो ढोला ॥ ए देशी ॥ राग परज ॥ दर्शन पद मनमें वस्यो, तब सब रंग रोला || जगमें करणी लाख बे, एक दर्श अमोला || द० ॥ १ ॥ दर्शन विष करणी करी, एक कोडी न मोला || देव गुरु धर्म सार है, इनका क्या मोला ॥ ० ॥ २ ॥ दर्शन मोहनी नाशसें, अनुजव रस घोला ॥ जिन दर्शन पूजन करे, एही हर्ष कल्लोला ॥ ० ॥ ३ ॥ सम संवेग निर्वेदता, या स्ति करुणा तंबोला ॥ इन लक्षणसें मानियें, समकित रस चोला || द० ॥ ४ ॥ एक मुहूरत फरसीयें, दर्शन सुख मोला || निश्चय मुक्ती पामियें, जिनवर एम बोला || द० ||५|| इग डुग ती च सर दसे, सतसह भेद तोला || दर्शन पायो सिऊंनवें, देखी प्रतिमा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org