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________________ (३०) ॥ लागी लगन कहो केसे बूटे, प्राणजीवन प्रजु प्यारेसें ॥ ला ॥ ए देशी ॥ ॥रागनेरवी॥ कान सुहंकर चिदघन संगी, रंगी जिनमत सारेमें ॥रंगी० ॥ ज्ञान॥१॥ पांच एकावन नेद ज्ञानके, जडता जग जन टारेमें ॥ जड० ॥ ज्ञान० ॥२॥ नद अनद विवेचन कीनो, कुमति रंग सब बारेमें ॥ कु० ॥झान ॥३॥ प्रथम ज्ञानने पळी अहिंसा, करम कलंक निवारेमें ॥ कर ॥ झान ॥४॥ सदसदनाव विकाशी ज्ञानी, उर्नय पंथ विसारेमें ॥ उर्न ॥ ज्ञान ॥ ५॥ अज्ञानीकी करणी एसी, अंक विना शून्य सारेमें ॥ अंक ॥ झान ॥ ६ ॥ मति श्रुत अवधि मनःपर्यव हे, केवल सर्व उजारेमें ॥ केव० ॥ ज्ञान ॥७॥ अज्ञानी वर्ष एक कोटिमें, करम निकंदन नारेमें ॥ कर० ॥ झान ॥ ॥ ज्ञानी श्वासोवास एकमें, इतने करम विमारेमें ॥ श्त ॥ ज्ञान॥ ए॥ जरतेश्वर मरुदेवी माता, सिकि वरे पुःख जारेमें ॥ सि ॥ ज्ञान ॥ ॥ १० ॥ देशविराधक सर्वाधारक, जगवती वीर उजारेमें ॥ ज०॥ ज्ञान ॥ ११॥ जयंत नरेश्वर यह पद साधी, आतम जिनपद धारेमें ॥ श्राप ॥ ज्ञा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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