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(२०) जुत्ते ॥ गयप्पमाए गयमोहमाए, काएह निच्चं मुणि रायपाए ॥५॥
॥ श्रीसम्यग्दर्शनपदकाव्यम् ॥ ॥ जं दवबिकाएसु सद्दहाणं, तं दंसणं सवगुण प्पहाणं ॥ कुग्गहि वाहीउवयंति जेणं, जहा विधेण रसायणेणं ॥६॥
॥श्रीसम्यग्ज्ञानपदकाव्यम् ॥ ॥ नाणं पहाणं नयचक्कसिहं, ततवबोही कमयं पसिहं ॥ धरेह चित्तावसए फुरंतं, माणिकदी बत मोहरंतं ॥ ७॥
॥श्रीचारित्रपद काव्यम् ॥ ॥ सुसंवरं मोहनिरोधसारं, पंचप्पयारं विगमा यारं ॥ मूलोत्तराणेगगुणं पवित्तं,पालेह निच्चं पि हु सचरित्तं ॥७॥
॥श्रीतपपद काव्यम् ॥ ॥ बनं तहा निंतरनेयमेयं, कयाय उजे य कुकम्म नेयं ॥ उरककयु कयपावनासं, तवेण दहाग मयं निरासं ॥ ए॥ इति नवपदकाव्यं संपूर्णम् ॥
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