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________________ ( १७ ) ॥ अथ नवपदकाव्य प्रारंभः ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथमं अरिहंतपदकाव्यम् ॥ ॥ इंद्रवज्रावृत्तम् ॥ नियंतरंगा रिंगणे सुनाणे, सप्पा डिहेराइसय पहाणे ॥ संदेह संदोहरयं हरंतो, जाएह निश्चपि जिणेरहंतो ॥ १ ॥ ॥ श्री सिद्धपद काव्यम् ॥ ॥ शुकम्मावरण पमुक्के, अनंतनाणाइसिरीचउक्के ॥ समग्गलोगग्गपयन्त्र सिद्धे, जाएह निच्चं पि समग्गसिद्धे ॥ २ ॥ ॥ श्री आचार्य पद काव्यम् ॥ ॥ सुतवसंवेगमयं सुयेणं, संनीरखीरामय वीसुयेणं ॥ पीनंति जे ते जवजायराये, कायेह निच्चं पि पाये ॥ ३ ॥ ॥ श्रीउपाध्यायपदकाव्यम् ॥ ॥ ननंसुदं दहि पीया न माया, जे दंति जिव्हा न्हि सूरी सपाया ॥ तम्हाहु ते चेव सया जजेह, जंमुरक सुरकाएं लहुं लदेह ॥ ४ ॥ ॥ श्री साधुपद काव्यम् ॥ ॥ खंते य दंते य सुगुत्तिगुत्ते,मुत्ते य संते गुण जोग For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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