SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८ ) चारि पदयोग ॥ जे उवकाय सदा ते नमतां, नावे जवजय सोग रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ १५ ॥ बावना चंदन रस समवय, श्रहितताप सवि टाले ॥ ते नवकाय नमीजें जे वली, जिन शासन अजुवाले रे ॥ ज० ॥ सि० ॥ २० ॥ ॥ ढाल ॥ तपसझायें रत सदा, द्वादश अंगना ध्याता रे ॥ उपाध्याय ते यातमा, जगबंधव जग जाता रे ॥ वी० ॥ ५ ॥ इति उपाध्यायपद पूजा ॥ ॥ पंचम मुनिपद पूजा प्रारंभः ॥ ॥ काव्यं, इंद्रवज्रावृत्तम् ॥ साहू संसाहि संजमाणं ॥ नमो नमो सुद्ध दयादमाणं ॥ ॥ जुजंगप्रयात वृत्तम् ॥ करे सेवना सूरिवायग गलीनी, करूं वर्णना तेहनी शी मुणिनी ॥ समेता सदा पंचसमिति त्रिगुप्ता, त्रिगुप्तें नहीं काम जोगेषु लि. ता ॥ १ ॥ वली बाह्य अभ्यंतर ग्रंथि टाली, होये मुतिनें योग्य चारित्र पाली ॥ शुभाष्टांग योगें रमे चित वाली, नमूं साधने तेह निज पाप टाली ॥ २ ॥ ॥ ढाल ॥ उलालानी देशी ॥ सकल विषय विष वारीनें, निःकामी निःसंगी जी ॥ जवदवताप शमावता, यातमसाधन रंगी जी ॥ १ ॥ जलालो ॥ जे रम्या For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003851
Book TitlePuja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1818
Total Pages96
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy