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________________ स्तवनानि. ए पद्मावतीसाथें त्यां आवे ॥ नाथ ऊर्ध्व शिर फणीकुं धरावे, जर अपरा धी देव मरावे ॥ था ॥ ६॥ सांश् शरण लश् समकित पावे, फणिपति नाटक विधि विरचावे ॥ प्रजुचरणे नमि गेह सिधावे, जगदीश्वर घन घाती हरावे ॥ आ ॥ ७॥ साकारें केवल उग पावे, धर्म कही जिन नाम खपावे ॥ नूतल विचरी मोद सिधावे, अगुरु लघु गुण प्रनु निपजा वे ॥ आ॥७॥आरतिगतकी आरती गावे, श्रोता वक्ता रति उतरावे ॥ मनमोहन प्रजु पास कहावे, श्री शुनवीर ते शीश नमावे ॥ अ० ॥ए॥ ॥अथ मंगल चार ॥ ॥ चारो मंगल चार, आज महारे चारो मंगल चार ॥ देख्यो दरस सरस जिनजीको, शोना सुंदर सार॥आज॥१॥डिनु दिनु जनमन मोहन अों, घसी केसर घनसार ॥ आप ॥२॥ विविध जातिके पुष्प मंगावो, सफल करो अवतार ॥आ॥३॥धूप उरकेवो ने करो आरती, मुख बोलो जयकार आ० ॥॥ समवसरण आदीश्वर पूजो, चोमुख प्रतिमा चार ॥आ०५॥हैये धरी नाव नावना नावो, जिम पामो नवपार आ॥६॥ सकलसंघ सेवक जिनजीको, आनंदघन उपकार ॥ आप ॥ ७॥ इति ॥ ॥अथ ॥ श्रीपांच कारण- स्तवन ॥ ॥ दोहा ॥ सिद्धारथसुत वंदियें, जगदीपक जिनराज ॥ वस्तुतत्त्व सवि जाणीयें, जस आगमथी आज ॥१॥ स्याहादथी संपजे, सकल व स्तु विख्यात ॥ सप्तनंगि रचना विना, बंध न बेसे वात ॥२॥ वाद वदे नय जूजुआ, आप आपणे गम ॥ पूरण वस्तु विचारतां, कोइ न आवे काम ॥३॥अंधपुरुष एह गज, ग्रही अवयव एकेक ॥ दृष्टिवंत लहे पूर्ण गज, अवयव मली अनेक ॥४॥ संगति सकलनयें करी, जुगतियोग शुझबोध ॥ धन्य जिनशासन जग जयो, जिहां नहिं किश्यो विरोध ॥५॥ ॥ ढाल पहेली ॥ राग श्राशावरी ॥ ॥ श्री जिनशासन जग जयकारी, स्याछाद शुक्ररूप रे ॥ नय एकांत मिथ्यात निवारण, अकल अजंग अनूप रे ॥श्री० ॥१॥ ए आंकणी ॥ कोश कहे एक कालतणे वश, सकल जगत गति होय रे ॥ कालें उपजे कालें विणसे, अवर न कारण कोय रे ॥ श्री० ॥२॥ कालें गर्न धरे जग वनि ता, कालें जन्मे पुत्त रे ॥ कालें बोले कालें चाले, कालें काले घरसुत्त, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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