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________________ स्तवनानि. ५७३ ॥णाजू॥ श्म निसुणी हरख्यां सहु ॥केरोहिणी ने वली राय रे॥के॥ दीप कहे मुनि कुंनने ॥ के० ॥प्रणमी स्थानक जाय रे ॥ के० ॥१॥जू॥ . ॥ ढाल बही॥ ॥ एक दिन वासुपूज्यजी ए, समोसस्या जिनराज ॥ नमो जिनराजने रे ॥ राय ने रोहिणी दरखियां ए, सीधां सघलां काज ॥ न ॥१॥ बहु परिवारशुं आवियां ए, वंदे प्रजुना पाय ॥ना प्रमुखथी वाणी सुणी ए, आनंद अंग न माय ॥ न ॥२॥ राय ने रोहिणी बेहु जणां ए, सीधोसंय म खास ॥न॥ धन्य धन्य संयमधर मुनि ए, सुर नर जेहना दास ॥न॥ ॥३॥ तप तपी केवल लही ए, तयां बहु नर नार ॥न॥ शिवपद अवि चल पद लघु ए, पाम्या नवनो पार ॥ न० ॥ ४ ॥ एम जे रोहिणी तप करे ए, रोहिणीनी परें तेह ॥ न ॥ मंगलमाला ते लहे ए, वली अजरा मर गेह ॥ न ॥५॥ धन्य वासुपूज्यना तीर्थने ए, धन्य धन्य रोहिणी नार ॥ न० ॥ए तप जे नावें करे ए, पामे ते जयकार ॥ न ॥६॥ संवत अढार उंगणशाउनो ए, उज्ज्वल नाव मास ॥ न० ॥ दीपविजयें तस गाश्यो ए, करी खंगात चोमास ॥न०॥७॥ कलश ॥ वासुपूज्य जग, नाथ साहेब, तास तीर्थे, ए थया ॥ चार पुत्र ने, आठ पुत्री थी, दंपती, मुगतें गयां ॥ तपगब विजयाणंद पटधर, विजय देवेंज, सूरीसरु ॥ तास राज्ये, स्तवनकीधुंसकल संघ, सोहंकरु ॥ सकल पंमित, प्रवर नूषण, प्रेम रत्न गुरु,ध्यायिया ॥ कवि दीपविजयें, पुण्य हेतें, रोहिणी गुण, गाश्या॥१॥ ॥ अथ श्री विनय विजयजी कृत आदि जिननी विनति ॥ ॥ पामी सुगुरु पसाय रे, शत्रुजय धणी ॥ श्रीरिसदेसर विनवू ए ॥१॥ त्रिजुवननायक देव रे, सेवक वीनति ॥ आदीश्वर अवधारीयें ए ॥२॥ शरणे आव्यो स्वामी रे, हुं संसारमां ॥ विरुए वैरीयें नड्यो ए ॥३॥ तार तार मुज तात रे, वात किशी कहुं ॥ नव नव ए नावठ तणी ए ॥४॥ जन्म मरण जंजाल रे, बाल तरुणपणुं ॥ वली वली जरा दहे घणुं ए ॥५॥ केमे न आव्यो पार रे, सार हवे स्वामी ॥ श्यें न करो एक माहरी ए ॥६॥ तास्या तुमें अनंत रे, संत सुगुण वली ॥ अपराधी पण उमस्या ए॥७॥ तो एक दीन दयाल रे, बाल दयामणो ॥ हुँ शा माटें वीसस्यो ए ॥ ॥ जे गिरुआ गुणवंत रे, तारो तेहने ॥ तेमांहे अचरि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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