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स्तवनानि,
५३ए पिंड उवेख्यो॥ सा ॥३॥ नर नव दोहिलो रे, पामी मोह वश पमी यो ॥ परस्त्री देखीने रे, मुफ मन तिहां जई अडियो ॥काम न को सस्यां रे, पापें पिंक में नरीयो ॥ सुध बुध नवि रही रे, तेणे नवि आतम तरीया ॥ सा ॥४॥ लक्ष्मीनी लालचे रे, में बहु दीनता दाखी ॥ तोपण नवि मली रे, मली तो नवि रही राखी ॥ जे जन अनिलसे रे, तेतो तेहथी नासे ॥ तृणसम जे गणे रे, तेहनी नित्य रहे पासें ॥ सा० ॥५॥ धन धन ते नरा रे, एहनो मोह विछोडी ॥ विषय निवारीने रे, जेहने धर्ममां जोमी ॥ अनदय ते में नख्यां रे, रात्रिनोजन कीयां ॥ व्रत उ नवि पालि यां रे, जेहवां मूलथी लीधां ॥सा ॥६॥ अनंत नव हुँ जम्यो रे, जम तां साहिब मलियो ॥ तुम विना कोण दिये रे, बोध रयण मुऊ बलियो। संभव आपजो रे, चरण कमल तुम सेवा ॥ नय एम वीनवे रे, सुणजो देवाधिदेवा ॥ सा ॥ ७॥ इति ॥
॥ अथ श्री शंखेश्वरजीनुं स्तवन ॥ ॥ सहजानंदी शीतल सुख जोगी तो, फुःख हरिये सतावरी॥ केशर चंदन घोली पूजो रे कुसुमें ॥ अमृतवेलिना वैरीनी बेटी तो, कंत हार तेहनो अरि ॥ के० ॥ १॥ तेदना स्वामीनी कांतानुं नाम तो, एक वरणे लक्षण नरी॥ के० ॥ ते धुर थापीने आगल उवियें तो, ऊष्माण चंडक खंधारी ॥॥॥ फरसनो वरण ते नयन प्रमाणे तो, मात्रा सुंदर शिर धरी ॥के॥ वीसराज सुत दाहक नामें तो, तिगवरणादि दूरे करी ॥ के० ॥३॥ एकवीशमे फरसे धरी करण तो, अनिध ते सम हरी ॥ के० ॥अंतस्थे बीजो वर टाली तो, शिवगामी गति आचरी ॥ के॥ ॥४॥ वीश फरस वली संयम माने तो, आदिकरण धरी दिल धरी॥ के॥ ईणें नामें जिनवर नित्य ध्याउं तो, जिनहर जिनकुं परिहरी॥॥ ॥५॥ त्र्यंबकें दाह्यो वृष जन बोले तो, वात ए दिलमें न उतरी ॥ के० ॥ अज ईश्वर पण सीतानी आगें तो, जास विवश नटता धरी ॥ के० ॥६॥ ते जिनतस्कर तूं जिनराजा तो, हरि प्रणमे तुऊ पाजं परी ॥ ॥ बाल पणे उपगारें हरिपति, सेवन बल लंबन हरि ॥ के ॥ ७॥ प्रनु प्रत्य यिक जशलीहोत रहियें तो, नव नवमां नहीं शली कली ॥ के ॥ मन मंदिर महाराज पधारे तो, हरि उदयें न विनावरी ॥ के० ॥ ॥ सा
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