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________________ ५१५ चैत्यवंदनानि ॥ अथ वीशस्थानकतपना काउस्सग्गनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ चोवीश पंदर पिसतालीशनो, बत्रीशनो करीयें।दश पचवीश सत्ता वीशनो, कालस्सग्ग मन धरीयें ॥ १॥ पंच समसठ दश वली, सीत्तेर नव पणवीश ॥ बार अमवीस लोगस्स तणो, काउस्सग्ग धरो गुणीश ॥२॥ वीश सत्तर गवन, छादश नेपंच ॥ एणी परें काउस्सग्ग जो करे, तो जाये जव संच ॥३॥ अनुक्रमें काउस्सग्ग मन धरो, गुणी लेजो वीश ॥ वीश स्थानक एम जाणीयें, संदेपथी लेश ॥४॥ नाव धरी मनमां घणो ए, जो एकपद आराधे ॥ जिन उत्तम पदपद्मने, नमी निज कारज साघे॥॥ ॥अथ रोहिणीतपचैत्यवंदनं ॥ रोहिणी तप आराधी, श्रीश्री वासुपूज्य ॥ दुःख दोहग दूरे टले, पू जक होये पूज्य ॥१॥ पहेला कीजें वासदेप, प्रह ऊठीने प्रेम ॥ मध्यान्हें करी धोतीयां, मन वच काया देम ॥२॥ अष्ट प्रकारनी रचीयें, पूजा नृ त्य वाजिन ॥ नावें नावना नावीयें, कीजें जन्म पवित्र ॥३॥ बिहु कालें लेश धूप दीप, प्रनु आगल कीजें ॥ जिनवर केरी नक्तिशु, अविचल सुख लीजें ॥ ४॥ जिनवर पूजा जिनस्तवन, जिननो कीजें जाप ॥ जिनवर पदने ध्याश्ये, जिम नावे संताप ॥ ५॥ कोड कोम गुण फल दिये, उत्तर उत्तर नेद ॥ मान कहे ए विध करो, ज्युं होवे नवनो बेद ॥ ६ ॥ १३ ॥ ॥अथ विचरता जिन- चैत्यवंदन ॥ ॥सीमंधर प्रमुख नमुं, विहरमान जिन वीश ॥ रिखनादिक वली वंदीयें, संपर जिन चोवीश॥१॥ सिकाचल गिरनार बाबु, अष्टापद वलि सार ॥ समेतशिखर ए पंचतीर्थ, पंचमी गति दातार ॥२॥ ऊर्ध्व लोकें जिनहर नमुं, ते चोराशी लाख॥सहल सत्ताणुं उपरें, त्रेवीश जिनवर नांख ॥ ३॥ एक शो बावन कोम वली, लाख चोराणुं सार ॥ सहस चुम्माली सात शें, शाप जिन पमिमा उदार ॥४॥ अधोलोकें जिननवन नमुं, सात कोम बोहोंतेर लाख ॥ तेरशें कोम नेव्याशी कोम, शाग्लाख चित्त राख ॥५॥ व्यंतर ज्योतिषीमां वली ए, जिननवन अपार ॥ ते नवि ! नित्य वंदन करो, जेम पामो नवपार ॥ ६॥ तिळ लोकें शाश्वतां, श्रीजिनजुवन वि शाल ॥ बत्रीशशें ने जंगणशात, वंदू थ उजमाल ॥ ७ ॥ लाख त्रण ए काणुं सहस, त्रणशें वीश मनोहार ॥ जिनपमिमा ए शाश्वती, नित्यनित्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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