SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 530
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१० प्रतिक्रमण सूत्र. रत लग्न लेश कन्या परणावीने जामाता कीधो. एवी वात सांजलीने शेठ घरे श्राव्यो क्रोधाध्मांत थको कहेवा लागो जे मातृपूजन निमित्ते पाणि ग्रहण मांगलिक वघाववा जणी जमाश्ने मोकलो अने शे- मारवां सारु अत्यंजने संकेत कराव्यो हतो. हवे ते मातृपूजन निमित्तें जाय एटलामां वीकालवेला जाणी नवपरणीत हतो माटे शेग्नो पुत्र कहेवा लाग्यो के तमारीवती हुँ मातृपूजन करवा जाउं बुं, एम कही ते गयो एटलामां वच्चे रस्तामां अंत्यजें तेनो संकेत जाणी ते शेग्ना पुत्रने जमाइ समजी मारी नाख्यो नवितव्यताथी बलवत्तर कोइ नथी.पड़ी ते पुत्रमरण, वृ त्तांत सांजलीने हृदयस्फोट थश्शेठ पण मरण पाम्यो. अनुक्रमें घरनो स्वामी दामन्नक थयो रुषिजाषित वचन अन्यथा न थाय. अनुक्रमें एकदा पाउले पहोरेपाहरी देतो तेणे एक मंगल पाठक गाथा कहि. तद्यथा ॥ अणुपुंखमावहतावि, अन्नबा तस्स बहु गुणा हुंति ॥ सुह फुककम्म पुडंतो, जस्स कयंतो वह परकं ॥ १॥ ए गाथानो अर्थ सांजली एक लदनुं दान दीधुं, एमत्रण वार गाथा सांजली त्रण लद दान दीधुं रा जायें ते वात सांजलीने पोतानी पासें तेमाव्यो. पठी सर्व वीतक वात राजा आगल कही, राजा हर्ष पाम्यो थको तेने नगरशेग्नी पदवीयें स्थाप्यो. एकदा गुरु श्राव्या सांजलीवांदवा गयो,तिहां धर्मदेशना सांजली अने पुरा तन जव मत्स्य मांस पच्चरकाणादिक सर्व सांजऱ्या,बोधिलान पाम्यो, धर्मानु ष्ठान साचवी देवलोके गयो. तिहांथी महावीदेहमा सुकुलमा उपजशे,तिहां बोधिलाल पामी चारित्र लही केवलदान पामी परंपरायें मोदसुख पा मशे, अने केटलाएक तेहीज नवें सिद्धि पामे. ए वे प्रकारें फलनुं नवमुं छार थयुं ॥ - एटले सर्व मूलगुण प्रत्याख्यान सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान तथा अनिय हादिक देशउत्तरगुण पण होय अने श्रावकनें देश मूलगुण प्रत्याख्यानते श्रणुव्रत तथा देश उत्तर गुणप्रत्याख्यान ते गुणवतअने शिक्षाबत जाणवां. ते वली बेबे नेदें एक श्वर ते अल्पकालि अनागतादि पञ्चकाण मूल उ त्तर गुण पच्चरकाण अने उत्तरगुणपच्चरकाण ते शिक्षाव्रतादि तथा देशे मूलगुण पच्चकाणअने सर्वेथी उत्तरगुण पञ्चकाण अने मूलगुण क्रियारु एवं पञ्चकाण धम्मिवादिकने जाणवू इत्यादिक पच्चरकाणना नंग विकल्प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy