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________________ ४एस पच्चरकाण नाष्य अर्थ सहित. वघारित चणकादिक, उत्तराध्ययन योगने विषे श्राचारांग मध्यगत सप्तस तकाध्ययनने विषे चमरोद्देशक अनुज्ञा यावत् नगवतीयोगने विषे न कल्पे, बीजा सर्व योगमध्ये कटपे. ___ अने पढोगरी, फूंकरणुं, उकलधुं, वाशी करंब, तिलवटी, कुम्बर, निवी यातां, विग, गांठीयाना घारा, दलिया, गुंदविना मगीयादि, औषधादि, मो दक, पेटक, खंमा, सितावर, सोलां, वासी, गुंमपाक, गुदपाक, वगर तव्यां कांकरियां, अनुत्कालित श्कुरस, दिनत्रयावधि प्रसूत गोमुग्ध, बलहट्टी, अं गाराथी उतारी आज्यादि मिश्रित खीचडी तथा सेवश्का पाबला दिवसनी पचावेली तिलवटी, पर्पटकादि, गुमादिके मिश्रित न करेली तिलवटी, श्त्या दिक नीवीयातां श्रीआवश्यक, दशवकालिक, उत्तराध्ययनादि सर्व योगने विषे प्रायः कल्पे. एवो विचार प्रसंगथी जाणवा माटें लख्यो रे ॥३५॥ हवे गिहबसंसहेणं ए आगारथकी नीवीनां पच्चरकाणमांहे जे नीवियातां साधुने कल्पे संसृष्ट अव्य कहीयें, ते संसृष्ट अव्य जाणवाने कहे जे. ६ दही चनरंगुल, दव गुड घय तिल एग नत्तुवरि ॥ पिंगुल मकणाणं, अद्दामलयं य संसह ॥ ३६॥ अर्थः-(डुछ के) पुग्ध अने (दही के०) दधिमांहे कूर प्रमुख नाखीयें एटले दूध दही मिश्रित कूरादिक होय, ते जो दूध तथा दही कूरथी (चउ रंगुल के०) चार अंगुल उपर चडे तेने संस्कृष्ट अव्य कहीयें, ते नीवियातुं नीवीमां कल्पे एटले जात रोटी उपर दूध, दही, चार अंगुल प्रमाण उंचु चड्युं होय तो नीवीप्रमुख मांहे साधुने कल्पे अने चार अंगुलथी अधिक पांच आदिक अंगुलना प्रारंलथी जेवारें जंचु चडे, तेवारे ते विग जाणवू. माटे ते न कटपे. अने ( दवगुड के ) अव्यगोल एटले ढीलो नरम गोल अने (घय केण्) घृत ( तिल के० ) तेल ए त्रणे ज्यां सुधी (जत्तुवरि के०) नक्त जे नात अथवा रोटी ते उपरें (एग के०) एक अंगुल प्रमाण उंचां चढ्यां होय त्यां सुधी संस्कृष्ट अव्य कहेवाय, एटले नीवियातुं कहेवाय ते लेवू कल्पे अने बीजा अंगुलथी प्रारंजीने उंचा चडता देखाय, तेवारें विकृत अव्य एटले विगयअव्य जाणवां, ते लेवां कल्पे नही. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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