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________________ पच्चरकाण नाष्य अर्थसहित. ४ए हीयें, हां विवेकीने एटलु विशेष के जिहां विदलयुक्त करवू पडे, तिहां दही तथा बास जे वमामांहे नाखवी होय तेने ऊष्ण करी नाखीये तेवारें श्रावकने नदण करवा योग्य थाय, अन्यथा घोलवमां बावीश अनदयमां गणाय ते जदण करवा योग्य नथी. अकल्पनीय जाणवां ॥३३॥ हवे तेल तथा गोल विगश्ना पांच पांच निवीयाता कहे बे. तिलकुहि निनंजण, पक्कतिल पक्कुसहितरिय तिल्ल मली। सकर गुलवाणय पाय, खंम अधकढिय इकुरसो॥३४॥ अर्थः-प्रथम (तिलकुट्टी के०) तिल तथा गोल कूटीने खांमीने एकगं करिये, ते तिलवट कहीयें, वीजुं तव्या पक्वान्नथी उतरेलु दजेलु बलेवू तेल एटले पक्वान्ननुं तलण जाणवू, अथवा केरी प्रमुखादिकना सरसीया दिक तेल ते (निनंजण के०) निनंजन एटले निर्जजन जाणवं. त्रीजुं सर्व औषधवाला तेल एटले लादादिक अव्यथी पकावेलां तेलने (पकतिल के ) औषधपक्क तेल कहिये, चोथु तेलमांहे नारायणादिक औषधी पचाव्या पठी औषध उपर तरी वले ते (पकुसहितरिय के०) पक्वौषधिथी तरिय तेल एटले पकौषधियी वलेली तरि कहीयें. पांचमुं (तिबमलीके) तेलनी मली एटले तेलनो मेल कीटी जाणवी. ए पांच नीवियाता तेलना जाणवा. एना पण नेदांतरें घणा नेदो थाय. __ हवे गोलना नीवियाता कहे . एक (सकर के) साकर मिश्री, बी जो (गुलवाणिय के ) गोलवाणी तथा रांघेदुं गुलवाणुं अखात्रीजें कराय ते देशप्रसिक, त्रीजो ( पाय के ) गोलनी पांति ते पाकगुम जेणे करी खाजादिक लेपीयें 3यें एने मालवादिक देशने विषे काकबपांति एम जाषायें कहे बे, चोथो ( खंग के० ) खांमनी सर्वजाति, पांचमो (अधक ढिय इकुरसो के ) अर्को काढेलो श्छु एटले सेलमी तेनो रस, ए पांच नीवियाता गोलना जाणवा. एना पण नेदांतर घणा थाय ने ॥३४॥ ___ हवे कमाविगश्ना पांच नीवियाता कहे . पूरित्र तव पूत्रा बिय, पूअ तन्नेह तुरिय घाणाई॥गुल दाणी जल लप्पसि, य पंचमो पूत्तिकय पूजे ॥ ३५॥ अर्थः-(पूरितवपूश्रा के) पूस्यो एटले ढाक्यो सर्व तावडो ने जेणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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