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________________ प्रतिक्रमण सूत्र उघसंज्ञा, इत्यादिक सर्व विकार, वृदोने पण मनुष्यनी पेठे थता दीनामां आवे जे. जेम के, श्वेत आकमानुं वृक्ष तथा बील पलाशादिक वृक्ष, नूमिगत निधानने पोताना मूलनी जमें करी वींटी लिये , ते लोचनो लाव जाणवो, वर्षाकालने विषे मेघनी गर्जना सांजलीने शीतल वायुना फरसे करी अंकूर उत्पन्न थाय बे, ते हर्षनो नाव जाणवो. लजालु वेली, मनुप्यना हाथ वगेरे अंगना स्पर्शथकी संकोचाई जाय बे; ए लजा तथा नय नो नाव कहेवाय. अशोकवृद, बकुलवृद तथा तिलकवृदादिक नवयौवनस्वरूप सालंकार कामिनीना पगनी पानिना प्रहारें करी, तेना मुखनो तांबूलरस बांटवाथी, तेना करेला सस्नेहालिंगन वडे तथा तेना करेला हा वनाव कटादविदे करी तत्काल फलता दीसे बे; ए मैथुनसंझानो नाव जाणवो. कोकनद वृदनो कंद, मनुष्यनो पग लाग्याथी हुंकारा मूके केए क्रोधनो नाव जाणवो. रुदंती वेल, अहो हुँ उतां आ लोको उःखी कां थाय ने ? एवा अहंकारें करी निरंतर अश्रुपात करे बे. केम के, तेना योगश्री सुवर्णनी सिद्धि थाय बे; माटे ए माननो नाव जाणवो. प्रायः घj करीने वधी वेलीयो पोत पोतानां फलोने पांदमायें करी ढांकी लिये बे, ए मायानो नाव जाणवो. तथा नूमिका जलादिक श्राहारना योगें वृदो नी वृद्धि थाय जे; अने ते विना दिवसे दिवसें कुमलाई जाय डे. मनुष्य नी पेठे नागरवेलि प्रमुखने तिलवटी गोमय तथा उग्धादिकना दोहला उपजे जे. ते परिपूर्ण थया पनी पत्र, फल, फूल, तथा रसनी वृद्धि थाय बे; ए पण थाहारसंज्ञानो नाव जाणवो. वृदने पांडू. गांठ. उदरवृद्धि, सोजो तथाऽर्बलपणुं प्रमुख रोगें करी फूल, फल, पान, त्वचाने विकार दीसे . तथा सर्व वनस्पतिना आउखां पोत पोताना नियतज होय ; इष्ट तथा अनिष्ट श्राहारनी प्राप्तियें करी वृदो पुष्ट तथा अपुष्ट थाय बे; वेलीयो मार्गने मूकीने वृदनी उपरज चढे ; ए उघसंज्ञानो नाव जाणवो. इत्यादिक युक्तियें करी श्री आचारांगना पहेला श्रुतस्कंधना पहेला अध्ययनमा सविस्तर जीवपणुं स्थाप्युं बे. अहीं को पू के, जो वनस्पति जीवरूप होय तो बेदन तथा नेदन प्रमुख करतां कां रुदन करती नथी? अथवा नाशी जती नथी ? एनो उतर ए डे के, मनुष्यनी पेठे वनस्पतिने मुख, पग, तथा हाथ प्रमुख अवयवोनो अनाव डे अने स्थावर कर्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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