________________
४७६
प्रतिक्रमण सूत्र. होय ते ऊष्ण पाणी पीये अने एकासणादि पच्चरकाणनो नियम नथी. एमां तो ऽविहार, त्रिविहार, चनविहार यथासंजवें होय ॥ ११॥
चनहाहारं तु नमो, रतिपि मुणीण सेस तिह चनहा। निसि पोरिसि पुरिमे गा,सणाइ सहाण उतिचउदा ॥२शाश् ___ अर्थः-( नमो के ) नोकारसीनु पञ्चरकाण तथा ( रतिपि के० ) रा त्रिनु पञ्चरकाण (मुणीण के ) मुनिने, यतिने (तु के०) वली निय मा ( चउहाहारं के०) चनविहारज होय अने (सेसके०) शेष पोरिसी आदिक पञ्चरकाण ते मुनिने (तिहचउहा के०) त्रिविहारा तथा चळवीहारा यथासंचवे होय. हवे श्रावक आश्रयी कहे . ( निसीके० ) रात्रिनु पञ्च काण, (पोरिसिके) पोरिसीनुं पच्चरकाण, (पुरिम के) पुरिमनुं पच्चरकाण अने (एगासणा के०) एकासणादिक पच्चरकाण जे जे, ते (सहाण के० ) श्रावकने अर्थे (उति चउहा के०) विहार तिविहार अने चनविहार, ए त्रण प्रकारे यथायोग्य होय, तिहां नवकारसी अने पोरसी तो श्रावकने चउविहार पञ्चरकाणेज होय, अने शेष पूरिमहादि पञ्च काण तथा रात्रि दिवस चरिमादि पञ्चकाण ते सुविहार तिविहार अने चनविहारे यथायोग्य होय, परंतु ग्रंथांतरें एटलोविशेष जे जे एकासणादि त्रिविहार पञ्चरकाणीने रात्रे पाणहार होय अने उविहार पञ्चरकाणे एका सणादिकने विषे रात्रं चविहार होय तथा केटलेएक स्थानकें श्रावकने पण पोरिसी तिविहारें बोली जे. अने उविहार पञ्चरकाणे रात्रं तिविहार होय परंतु ते कारणिक जाणवू, व्यवहारे समजवू नही. इत्यादि बीजी विशेष वात ग्रंथांतरथी जाणवी, एटले चार विधिनु बीजुं द्वार पूर्ण थयु उत्तर बोल चौद थया ॥ १२ ॥२॥
हवे चार प्रकारना थाहारनुं त्रीजुं छार कहे . खुदपसम खमेगागी, आदारिव एइ देश वा सायं ॥
खुदिन वि खिव कुठे,जं पंकुवम तमादारो ॥१३॥ अर्थः-प्रथम सामान्य प्रकारे आहार- लक्षण कहे जे. जे ( खुहपस म के०) जुधाने उपशमाववाने अर्थे (खम के ) समर्थ होय एवोजे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org.