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________________ ४७४ प्रतिक्रमण सूत्र. काण करवू, तथा ( तश्य के० ) त्रीजा स्थानकने विषे (पाणस्स के०) पाणीना उ आगारर्नु पञ्चरकाण करवू तथा ( तुरिए के० ) चोथा स्थानकने विषे ( देसावगासं के०) देसावगासिकनु पञ्चकाण करवू तथा पांच मा स्थानकने विषे (चरिमे के ) बेहेमार्नु पच्चरकाण जे दिवस चरिमं एटले रात्रिनुं छविहार, त्रिविहार, चनविहार पाणहार प्रमुखनुं पञ्चरका ण ते ( जहसंचवं के० ) यथासंचवें जे पोताने करवानी श्छा होय ते यथाशक्तियें करवु तथा नवचरिमादि जे , ते पण यथासंचवें करवू.एम (नेयं के०) जाणवू. ए पांच माहेढुं जे को करवू ते पच्चरकाण कहीयें॥॥ वली ए पञ्चरकाण करवाना पाठनोज विशेष कहे . तद मद्य पञ्चकाणे, सु न पितु सूरुग्गयाइ वोसिरई॥ करण विदिन न नन्नर, जदावसीयाई बिअबंदे॥ए॥ अर्थः-( तह के०) तथा ए पद विशेष देखामवा वाची डे (मद्यप चकाणेसु के०) मध्यनां वे स्थानक जे विगइ, नीवी अने आयंबिलनुं तथा एकासण, बियासण अने एकलगणानुं ए बेनां उ पच्चरकाणोने विषे पृथग् पृथग् पञ्चरकाणे (सूरुग्गयाश् के०)सूरे जग्गए विगळ पच्चरकाश् श्त्या दिक पाठ ( नपिहु के० ) वारंवार न कहेवो, एटले प्रथम जे पच्चरकाण मांडे, तिहां सूरे जग्गए कहेवो, परंतु पञ्चकाण पच्चरकाण प्रत्ये न कहे वो, तेमज ( वोसिरई के०) वोसिर तथा वोसिरामि ए पाठ पण अंत ने विषे एक वार कहीये, पण वारं वार न कहीयें ए (करण विही के०) करवानो विधि एटले पूर्वाचार्य परंपरायें एमज कहेता आव्या ने कर वानो एहज विधि . माटें महोटा पुरुष पण ( ननम के०) नथी जणता. (जहा के०) जेम (आवसीया के०) आवस्सियाए ए पाठ ( बियबंदे के०) बीजा वांदणाने विष कहेता नथी, ए पण पूर्वाचार्यनी परंपरा जे तेम इहां पण जाणी लेवू ॥ ५ ॥ तह तिविद पच्चरकाणे, नन्नंति अ पाणग व आगारा॥ उविदादारे अचित्त, नोश्णो तहय फासु जले ॥१०॥ अर्थः-( तह के) तेमज वली (तिविहपञ्चरकाणे के०) त्रिविहारना For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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