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________________ ४७३ प्रतिक्रमण सूत्र. तेने अनत्तनुं पञ्चरकाण कहीयें, पण चोथनत्तनुं पञ्चकाण न कहीयें. अने उनयकोटि एकासणादिकें तो चोथनत्तनुं पच्चरकाण होयज. इत्या दिक जणाववा माटे चारे विधि देखाड्या ॥४॥ हवे बीजा पण चार विधि बे, ते देखाडे . नण गुरु सीसो पुण,पच्चरकामित्ति एव वोसिरई॥ नवउँगिब पमाणं, न पमाणं वंजणबलणा ॥५॥ अर्थः-प्रथम (गुरु के०) गुरु जे पञ्चरकाणनो करावनार होय,ते पञ्चरकाश एम (जण के०) नणे, एटले कहे; ए प्रथम विधि जाणवो. (पुण के) वली (सीसो के०) शिष्य जे पच्चरकाणनो करनार होय ते (पच्चरकामि के०) पच्चकामि (इति के ) एम कहे ए बीजो विधि जाणवो. अने (एव के०) एम संपूर्ण पच्चरकाणे गुरु ( वोसिरई के०) वोसिरई कहे. ए त्रीजो विधि जाणवो अने शिष्य जे पच्चरकाणनो करनार होय ते वोसिरामि कहे, ए चोथो विधि जाणवो. चार विधि कह्या. (श्व के०) इहां पच्चरकाणने विषे करतां तथा करावतां थकां पोताना मननो जे (उवढंग के०) उपयोग एटले मननी धारणा के तेज (पमाणं के) प्रमाण डे एटले मनमांहे जे पच्चरकाण धातूं होय तेज प्रमाण बे. परंतु (वंजण के० ) अदर तेनी (बलणा के0 ) बलना डे एटले स्ख लना बे. अर्थात् अनाजोगने लीधे धारेला त्रिविहार पञ्चरकाणथी बीजो कोश् चनविहार पञ्चरकाणनोज पाठ उच्चरीयें, ते वंजण बलना जाणवी ते (न पमाणं के०) प्रमाण नथी ॥५॥ हवे तेहीज उच्चारनो विशेष विधि कहे . पढमे गणे तेरस, बीए तिन्नि तिगाइ तश्शेमि॥ पाणस्स चउबंमि, देसवगासाइ पंचमए ॥६॥ अर्थः-हवे एनां पांच स्थानक ने तेमां (पढमेगणे के०) प्रथम स्था नकने विषे कालपञ्चरकाणरूप नोकारसी प्रमुख ( तेरस के०) तेर पच्च काण जाणवां, तेनां नाम आगली गाथायें कहेशे, तथा (बीए के) बीजा स्थानकने विषे विगश्, नीवी अने आयंबिल ए (तिनिउ के०) त्रण पञ्चकाण जाणवां. तथा (तश्यंमि के०) त्रीजा स्थानकने विषे (तिगाश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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