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________________ ४५६ प्रतिक्रमण सूत्र. असन्नाव स्थापना जाणवी, वली (गुरुग्वणा के०) गुरुनी स्थापना ते ए क (इत्तर के०) श्वर अने बीजी ( यावकहा के) यावत् कथिका तेमां श्त्वर ते थोमा काल लगें स्थापना रहे, जेम नोकरवालीअने पुस्तकादिक नीजे स्थापना बे, ते स्थापना क्रिया करवाने वखतें थापे , माटें ज्यां सु धी ते क्रिया करीयें, तिहां सुधी तेस्थापना रहे, जो दृष्टि तिहांनी तिहां रा खीयें, तो रहे, नहीं तो वली फरी बीजी स्थापना स्थापवी पडे ते श्वर का लनी स्थापना जाणवी. अने बीजी यावत्कथिक स्थापना ते घणा काल प र्यंत रहे, ते प्रतिमादिक तथा अदादिकनी बे प्रकारनी स्थापना करीयें बैयें. ए स्थापनानी आशातना पण गुर्वादिकनी पेरें टालवी ॥ ए॥ __ हवे स्थापना शा कारण माटें स्थापवी ? ते कहे जे. जेवारें सादात् गुणवंत (गुरुविरहं मि के०) गुरुनो विरह एटले अनाव होय, तेवारें (गुरुवदेसोवदंसणवं के० ) गुरूपदेशोपदर्शनने अर्थे एटले गुरुनो उपदेश देखामवाने माटें (उवणा के ) स्थापना स्थापवी जोश्य (च के०) हां नावार्थ ए जे, स्थापनानी आगल क्रिया करतां ते एवं जाणे जे गुरुज मुझने आदेश आपे , ते महारे श्वाकारि कहीप्रमाण करवं. केम के ?गु रुना अन्नावें जे धर्मानुष्ठान करवू, ते शून्यन्नाव गणाय. हवे दृष्टांत कहे बे. जेम (जिणविरहंमी के०) हमणां श्रीजिनेश्वरनो विरह उतां (जिण बिंब के ) श्रीतीर्थकरना बिंब एटले प्रतिमानी (सेवण के० ) सेवन क रीने (आमंतणं के०) आमंत्रण करवू. जे हे जगवंत ! तमें मुजेनें संसार स मुज्थकी तारो,मोद आपो इत्यादिकजे कहे,ते (सहलं के०)सकल थाय जे. ए दृष्टांतें श्हां पणश्रीगुरुना विरहें गुरुनी स्थापना पण सफल होय . ए गुरु स्थापनाना एकज बोलनुं पन्नरमुं हार थयु उत्तर बोल १५ए थया ॥ ३० ॥ हवे वे प्रकारना अवग्रहनुं शोलमुं हार कहे जे. चनदिसि गुरुग्गहो इद, अदुह तेरस करे सपरपरके ॥ अणणुन्नायस्ससया, न कप्पए तब पविसेन॥३१॥दार॥१६॥ अर्थः-( इह के०) ए श्रीजिनशासनमांदे ( गुरुग्गहो के० ) गुरुथकी अवग्रह (चदिसि के०) चारे दिशाने विषे ( सपरपके के०) ख अने परपद श्राश्रयी अनुक्रमें केटलो केटलो होय? ते कहे . तिहां एक (श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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