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________________ गुरुवंदन जाय अर्थसहित. ४३७ विचायुं जे या शमी एटले जांखरांना वृक्ष सरिखो हुं हुं ; तेने उत्तम वृक्ष समान गुणवंत लोक पूजे बे. अने महारामां श्रमणपएं नथी; मात्र रजोहरणादि चितिकर्मगुणे करी मुकने पूजे बे, एम विचारी, पाठो खावी - साघुनी, पासें लोयणा लई, उजमाल थयो एम एने पूर्वे द्रव्य चिति, कर्म हतुं, पढ़ी जावचितिकर्म उत्पन्न थयुं. ए बीजं उदाहरण जाणवुं. वे जा कृतिकर्म उपर वीरा शालवी ने श्रीकृष्णनुं उदाहरण कहे a. श्रीनेमिनाथ जगवान् द्वारिकायें समोसख्या तेवारें श्रीकृष्ण सर्वसाधुर्जने द्वादशावर्त वांदणे वांद्या, एने जावकृतिकर्म कहीये, अने श्रीकृष्णने रुरुं मनावानें वीरा शालवी यें पण वांद्या एने द्रव्यकृतिकर्म कहीयें. एना संबंधनो विस्तार आवश्यकवृत्तिथी जाणवो. ए त्रीजुं उदाहरण जाणवुं. हवे चोथा पूजाकर्म उपर बे सेवकनो दृष्टांत कहे बे. जेम एक राजा ना बे सेवक हता ते गामनी सीमा निमित्तें विवाद करता राजपंथें जातां हता, मार्गमां साधु देखीने प्रशस्त मन, वचन ने कायायें करी एकें क के "साधौ दृष्टे वा सिद्धिः " एटले साधु दिवे ते निश्चयें कार्य सिद्धिथाय, एमां संशय नथी, एम कही एकाग्र चित्तें साधुने वांद्या ने बीजे सेव कें उलटी हांसी रूपें व्यवहार मात्रे तेने वनमन कर. पी राजद्वारें गये थके पहेला सेवकनो जय थयो, ने बीजानो पराजय थयो एम एकने soil पूजाकर्म ने बीजानें जावथी पूजाकर्म थयुं; ए चोथुं उदाहरण. हवे पांचमा विनयकर्मने विषे पालक नव्याने सांबनो दृष्टांत कहे बे. श्री नेमिनाथ जगवान् द्वारिका नगरीयें समोसख्या, तेवारें श्रीकृष्ण बोल्या के जे श्री नेमीश्वर जगवाननें सर्वथी पहेलुं जई वंदन करशे, तेने महारो पट्ट तुरंगम विशेष पीश, ते सांजली तुरंगमने लोजें प्रथम रात्रि तां पण पालकें वीने वांद्या, ते द्रव्यथकी वंदन जावं. नेत्यां सां ब कुमारें जावकी वांद्या बे, ते जाववंदन जावं. ए पांचमुं उदाहरण क. ए पांच दृष्टांतनुं बीजुं द्वार थयुं, उत्तर बोल दश यया ॥ ११ ॥ वे पासादिक पांच वंदनीयनुं त्रीजुं द्वार कहे . पासच्चो उस्सन्नो, कुसील संसत्तन हाचंदो ॥ डुग डुग ति गणेग विदा, अवंद पिता जिए मयं मि ॥ १२॥दारं ॥ ३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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