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________________ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित. ४३५ , हवे पूर्वोक्त बावीश छारमा पहेढुं पांच नामनुं द्वार कहे बे. पडिदार गाहा ॥ वंदणयं चिश्कम्मं, किश्कम्मं विणयकम्म पुत्र कम्मं ॥ गुरु वंदण पण नामा, दवे नावे उदोदेण ॥१०॥ दारं ॥२॥ अर्थः-(पमिदारगाहा के०) प्रतिछारनी गाथा कहे जे. प्रथम (वंदणयं के०) वंदनकर्म ते अनिवादन स्तुति रूप जाणवू. बीजं (चिश्कम्मं के०) चितिकर्म ते रजोहरणादि उपकरण विधि सहितपणे कुशलकर्मनुं करवुजा णवं. त्रीजु (किश्कम्मं के) कृतिकर्म ते शरीर मस्तकादिकें अवनमन क रवू. चोथु (पुकम्मं के०) पूजाकर्म ते प्रशस्त मन, वचन अने काय चेष्टा रूप जाणवू. पांचमुं ( विणयकम्म के) विनयकर्म ते पूर्वोक्त चार प्रकारें विशेष उद्यमपणुं जाणवू. ए ( गुरुवंदण के०) गुरु वांदणांनां (प णनामा के० ) पांच नाम ते वंदनानां पर्याय जाणवा. ए ( दवेनावे के०) एक व्यथकी वांदणां अने बीजां नावथकी वांदणां एम (मुह के० ) बे प्रकारें (उदेण के०) उपेन एटले सामान्यप्रकारे जाणवां ॥१॥ हवे पांच दृष्टांतोनुं बीजुं छार कहे जे. सीयलय कुए वीर, कन्द सेवग पालए संबे॥ पंचेए दिता, किश्कम्मे दव नावहिं॥२२॥दारं ॥२॥ अर्थः-प्रथम वंदन कर्मउपर अव्यवंदन अने नाववंदन आश्रयी (सीय लय के०) शीतलाचार्यनो दृष्टांत, बीजा चितिकर्म उपर (कुमुए के० ) खुलकाचार्यनो दृष्टांत जाणवो. त्रीजा कृतिकर्म उपर ( वीरकन्ह के० ) वीरा शालवीनो अने कृष्ण महाराजनो दृष्टांत जाणवो. चोथा पूजाकर्म उपर (सेवग 3 के०) राजाना बे सेवकोनो दृष्टांत जाणवो. पांचमा विनयकर्म उपर (पालए संबे के० ) श्रीकृष्णमहाराजना पुत्र पालक अने साम्बनो दृष्टांत जाणवो ( ए के०) ए (पंचे के) पांच ( दिता के७) दृष्टांत ते (किश्कम्मे के०) कृतिकर्म एटले वांदणाने विषे (दवनावहिं के०) अव्य जावें करीने जाणवा ॥१९॥ हवे ए पांचे दृष्टांतोनी कथा कहे . हविणार नयरना वज्रसिंह राजानी सौजाग्यमंजरी राणीने शीतलना मा पुत्र हतो,अने शृंगारमंजरी नामे पुत्री हती. कंचनपुर नगरें विक्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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