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________________ देववंदन नाष्य अर्थसहित. ४१५ तिबादिव वीरथुइ. नवमे दसमे य उजायंत थुई ॥ अहवा याइ गदिसि, सुदिठि सुर समरणा चरिमे ॥ ४५ ॥ अर्थः-तथा जो देवाणविदेवो अने कोवि नमुक्कारो ए बे गाथा रूप (नवमे के०) नवमा अधिकारने विषे या वर्तमान (तिबगहिव के०)तीर्थना अधिपति गकुर जे श्री (वीर के०) वीर नगवान् तेनी (थुर के०) स्तु ति जाणवी. तथा उजिंतसेलसिहरे ए गाथा रूप ( दसमे के०) दशमा अधिकारने विषे ( अ के ) वली ( उजायंत के) श्रीरैवतकाचल पर्व तने विषे श्रीनेमिनाथ नगवाननी (थुई के० ) स्तुति जाणवी. तथा “च तारि अहदस दोय वंदिया” ए गाथा रूप (गदिसि के) अगीयारमा अधिकारने विषे (अहवायाश् के ) अष्टपादादिकने विषे श्रीचरतेश्वरें करावेली चोवीश जिन प्रतिमानी स्तुति जाणवी. तथा वेयावच्चगराणं ए गाथारूप (चरिमे के०) बेला बारमा अधिकारने विषे (सुदिहि के)सम्य ग्दृष्टि (सुर केण) देवताने (समरणा के) स्मरवारूप स्तुति जाणवी ॥४॥ था ठेकाणे अगीयारमा अधिकारने विषे चत्तारि अहदस इत्यादि गा थामां घणां प्रकारें देव वांद्या ३ ते मांहेला केटला एक श्हां लखीयें बैयें. संनवादिक चारजिन दक्षिण दिशें, तथा सुपार्थादिक आठ जिन पश्चिमदि शें, तथा धर्मादि दश जिन उत्तर दिशें, तथा श्रीषन अने अजित ए बे जिन पूर्वदिशे. एवं चोवीश जिन वांद्या बे, तथा बीजे अर्थे प्रथमना चार ने आठ गुणा करीयें, तेवारें बत्रीश थाय. अने वचला दशने बे गुणा क रियें, त्यारे वीश थाय, ए बे आंक मेलवीये तेवारें बावन थाय, ते बावन चैत्य, नंदीश्वरही , तेने वांया बे. तथा त्रीजे अर्थे ( चित्त के ) बांग्या ले (अरि के०) वैरी जेणें ए वा अहदस एटले अढार अने बे पाबला मेलवीये त्यारें वीश तीर्थंकर श्राय ते श्रीसमेतशिखरें सिक थया तेने वांद्या. अथवा विचरता जिन उत्कृष्टे कालें एक समय जन्मश्री वीश होय तेमने वांद्या. तथा चोथे अर्थे श्राग्ने दश अढार थाय, तेनी साथें वीशनो चोथो नाग पांच थाय, ते मेलवीयें, तेवारें त्रेवीश थया. ते एक श्रीनेमीश्वर वि ना त्रेवीश जिन श्रीशत्रुजयें समवसस्या , माटें तेने वांद्या. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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