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प्रतिक्रमण सूत्र.
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त्रांना कहे . तिहां प्रथम नवकारने विषे द्धा, प्रा, व, हू, का, व, प्प, ए ( सग के० ) सात अक्षर गुरु एटले नारे जाणवा
तथा खमासमणने विषे बा, जा, ब, ( ति के० ) त्रण अक्षर गुरु जावा. तथा इरियावहिने विषे वा, क, क, क्क, क, त्तिं, हि, क, त्ति, हि, द्द, स्स, छा, क, स्स, त, बि, त्त, ह्री, म्म, ग्घा, हा, स्स, ग्गं, ए ( च वीस के० ) चोवीस अक्षर गुरु जाणवा.
तथा नमुने विषे तु छ, द्धा, त्त, वि, त्त, जो, स्कु, ग्ग, म्म, म्म, म्म, म्म, म्म, क्क, ही, प्प, ह, न्ना, द्धा, त्ता, व, न्नु, व, रके, वा, त्ति, द्धि, त्ता, द्धा, स्सं, ह, वे, ए ( तित्तीसा के० ) तेत्री अक्षर गुरु जाणवा. केट ला एक वजमाणं पदना बकारने गुरु कहेता नथीने केलाएक म्म, ए त्रणने गुरु गणीने तेत्री गुरु अक्षर करे. तिहां चूलिकानी गाथा गुरु नयी गणता. इत्यादिक बहु मतांतर बे, पण इहां तो संप्रदायागत एक टकार जारे गणीयें बैयें.
तथा अरिहंत चेश्याणं रूप चैत्यस्तवने विषे स्स, ग्गं, त्ति, त्ति, का, त्ति, म्मा, त्ति, त्ति, ग्ग, त्ति, द्धा, प्पे, दु, स्स, ग्ग, न्न, छ, मु, ग्गे, त्त, बा, हिग्गो, स्स, ग्गो, का, प्पा, ए (गुणतीश के०) गणत्रीश अक्षर गुरु बे.
तथा लोगस्सरूप नामस्तवने विषे स्स, जो, म्म, छ, त्त, स्सं, प्प, प्प, प्फ, ऊं, ऊं, म्मं, लिं, व, छ, अ, ब, त्ति, स्स, त्त, द्धा, ग्ग, त्त, म्म, बे, , द्धि, व, ए (वीसा के० ) अवावीश अक्षर गुरु जाणवा
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तथा पुरकरवरदी रूप श्रुत स्तवने विषे रक, ढे, म्मा, ऊं, स्स, स्स, स्स, प्फो, स्स, स्स, ब्ला, रक, स्स, च्चि, स्स, म्म, स्स, प्र, हे, न्न, न्न, स्स, प्रू, च्चि, ब, हि, क, च्चा, म्मो, ह, म्मु, त्त, छ, स्स, ए ( चडतीस के० ) चोत्री र गुरु जाणवा.
तथा सिद्धाणं बुद्धारूप सिद्ध स्तवने विषे द्धा, द्धा, ग्ग, व, द्धा, को, क्का, स्स, द्व, स्स, जिं, रका, स्स, म्म, क, हिं, ह, त्ता, घ, वी, छ, छि, हा, का, छिं, च, म्म, दि, हि, स्स, ग्गं, ए ( इगतीस के०) एकत्रीश अक्षर गुरु बे.
तथा प्रणिधान त्रिकने विषे हे, वा, ब, वे, ग्गा, दु, डि, ऊ, च्चा, छ, , ए ( बार गुरुवा के० ) वार गुरुवर्ण एटले नारे अक्षर जाणवा ॥
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