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प्रतिक्रमण सूत्र. ष्टियें जो पूंजीने “अणुजाणह जसुग्गहा” ए पद कहीने परग्वे,पढी त्रण वार वोसिरे कहे, मात्रे प्रमुख जिंजेली नूमि उपरे परग्वे, तो पंचेंडियनी घातनो करनार जाणवो. ए पांच मली तेत्रीश गुणो थया. (तिगुत्तो के० ) त्रण गुप्तियो एटले देशथी अथवा सर्वथी जे योगनी निवृत्ति तेने गुप्ति कहि ये. ते त्रण प्रकारें बेः-मनोगुप्ति, वचनगुप्ति तथा कायगुप्ति. तेमां वली मनो गुप्ति त्रण प्रकारें बेः- असत्कल्पनावियोगनी,समताजाविनी, तथा आत्मा रामता. तेमां आर्त तथा रौअध्यानने अनुयायी ते शत्रु तथा रोगादिक माठी वस्तुनी अपेक्षायें हिंसादिक आरंन संबंधी जे मनोयोगनीनिवृत्ति ते असत्कल्पनावियोगनी मनोगुप्ति कहियें. ए गुप्ति, प्रसन्नचंदादिक साधु नी पर्नु अशुन ध्यान तथा अशुल नावनाथी मनने निवृत्ताववाने प्रस्ता वे थाय . बीजी सिकांतने अनुसारें धर्मध्यानने अनुयायि नावनायें करी सहित परलोक साधक एवी समता परिणामरूप जे मनोयोगनी निवृत्ति, ते समतानाविनी मनोगुप्ति कहिये. ए गुप्तिनो अवकाश शुलना वना तथा शुन्नध्यानना अनिमुख कालें होय. त्रीजी शैलेशीकरणकालें सकल मनोयोगनी निवृत्ति, ते आत्मारामता मनोगुप्ति जाणवी. हवे बीजी वेचनगुप्ति बे नेदें :-एक मौनावलंबिनी अने बीजी वागनियमिनी. तेमां पहेली ए जे संज्ञा, होकारो, खोखारो, पाषाण तथा काष्ठ- फेंकवु,नेत्रपत्र वी तथा करपदवी प्रमुखने बमवे करी मौन करवू,अथवा सकल नाषायो गनु, , ते मौनावलंबिनी नाषागुप्ति कहियें. ए गुप्ति, ध्यान तथा पूजा ना कालें होय . बीजी जणवू, नणावq. पूबवू, प्रश्ननो उत्तर देवो, धर्मोपदेश देवो, परावर्त्तना प्रमुखने कालें यत्नापूर्वक तथा शास्त्रने अनुसार मुखें वस्त्रादिक देश्ने बोलतां जे सावद्ययोगनी निवृत्ति, ते वागनि यमिनी जाषागुप्ति कहिये. त्रीजी काय{प्ति ते बे नेदें बेः-एक चेष्टानिवृत्ति रूप तथा बीजी यथासूत्रचेष्ठा नियमिनी. तेमां प्रथम कायोत्सर्गावस्थायें काययोगनी स्थिरता अथवा सकलकाययोगर्नु रूंधq ते चेष्टानिवृत्तिरूप कायगुप्ति कहियें. बीजी शास्त्रना अनुसारें सूर्बु, बेस, मूकबु, ले, जq, श्राव, ऊनुं रहे. इत्यादिक गमें कायायें करी पोताने बंदें प्रवृत्तती चेष्टा थी निवृत्ते, तेने यथासूत्रचेष्टानिय मिनी कायगुप्ति कहियें इहां गुप्तिने कालें जे शुद्धोपयोग ते नावगुप्ति कहिये,एत्रण गुप्तियो अने प्रथमना तेत्रीश मली
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