________________
कल्याणमंदिरस्तोत्र अर्थसदित. ३१ए (बत के०) आश्चर्य डे के (कर्मचौराः केश) कर्मरूप जे चोरो ने, ते (कथं ध्वस्ताः के) केवी रीतें हण्या ? ( किल के) निश्चे. अर्थात् तमें क्रोध विनाज कर्म चोरोने हण्या ए महोटु आश्चर्य ? ( यदिवा के०) समाधान अर्थमा जेम केः-(अमुत्र के०) आ (लोके के०) लोकने विषे ( शिशिरा पि के०) शीतल एवी पण (हिमानी के०) हिमसंहति जे बरफ ते (नील जमाणि के०) नीलां ने वृदो जेने विषे एवां (विपिनानि के७) वन जे तेने (किं के०) शुं (न प्लोषति के० ) न बाले जे ? अर्थात् बाले बेज. एटले जे शीतल एवी हिमसंहति , ते नीलां वृदनां वनोने दहन करे बे, तेम क्रोध रहित एवा तमो पण कर्मचोरोने हणो बो, ते युक्तज ॥ १३॥
हवे योगियोयें ध्यान करवा योग्य एक जिनस्वरूपने कहे . त्वां योगिनो जिन! सदा परमात्मरूप, मन्वेषयंति हृद यांबुजकोशदेशे ॥ पूतस्य निर्मलरुचेर्यदिवा किमन्य, ददस्य संन्नवि पदं ननु कर्णिकायाः ॥ १४ ॥ अर्थः-( जिन के ) हे जिन ! ( योगिनः के ) महर्षियो जे ते (हृदयांबुजकोशदेशे के०) हृदयरूप जे कमल तेना कोश एटले कली ते ना मध्यप्रदेशने विषे (परमात्मरूपं के०) सिझस्वरूप एवा (त्वां के०) त मोने (सदा के०) नीरंतर (अन्वेषयंति के०) ज्ञानचकुयें करीने जोवे बे, ए अर्थ युक्त जे. (यदिवा के०) अथवा जेम (ननु के०) निश्चे ( निर्मलरु चेः के०) निर्मल डे रुचि एटले कांति जेमनी एवं अने (पूतस्य के० ) प वित्र एवं (अदस्य के०) कमलनुं बीज जे जे तेनुं ( कर्णिकायाः के०) क र्णिकाथकी (अन्यत् के०) बीजुं एटले कमलमध्यप्रदेश टालीने बीजु (प दं के) स्थानक (किं संजवि के) शुं संजवे जे ? ना संजवतुं नथी. त्या रें शुं संजवे बे? तो के कमलनी कर्णिकाज संजवे ठे? तेम तमें पण निर्म लरुचि युक्त तथा सकल कर्ममलना अपगमथकी पवित्र थयेला एवा डो. ए माटें तमारं पण योगीसोना हृदयकमलकर्णिकारूपस्थानकने विषे रहे, थाय जे, ते योग्यज ने ॥ १४ ॥
हवे तमारा ध्यान करनारा पण तमारी जेवाज थाय ने ते कहे .. __ध्यानाजिनेश! नवतोनविन दणेन, देहं विहाय ....
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org