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नक्तामरस्तोत्र अर्थसहित. अर्थः-हे नाथ! लोकने विषे (स्त्रीणांशतानि के०) स्त्रीउना शश्कमाएटसे घणी स्त्रीयो, डे, ते स्त्रीयो, (शतश:के) शश्कको गमे नाना प्रकारना स्वरूप वाला एवा (पुत्रान् के०) पुत्रोने ( जनयंति के०) जन्म आपे ने खरी, परंतु ते (अन्या के) बीजी (जननी के ) माता जे बे, ते (त्वप मं के० ) तमारी उपमा देवाय एवा (सुतं के०) पुत्रने (नप्रसूता के०) उप्तन्न करी शकती नथी. त्यां दृष्टांत कहे , के ( सर्वादिशः के०) सर्वे मली श्राप दिशा जे , ते (जानि के०) अश्विन्यादिक नक्षत्रोने (दधति के०) धारण करे , परंतु (प्राच्येव दिकू के०) एक मात्र पूर्व दिशाज (स्फुरदंशुजालं के०) देदीप्यमान डे किरणजाल जेनां एवो अने (सह स्त्र के) हजार २ ( रश्मिं के) किरणो जेमनां एवा सूर्यने (जनयति के) उप्तन्न करे . अर्थात् जेम एक पूर्वदिशि सूर्यनी जननी , तेम एक तमारी माताज तमारा सरखा सुपुत्रनी जननी जे ॥॥
हवे प्रजुनी परमपुरुषत्वे करीने स्तुति करे ले. त्वामामनंति मुनयः परमं पुमांस, मादित्यवर्णमम खं तमसः परस्तात् ॥ त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयं
ति मृत्युं, नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीं! पंथाः॥२३॥ अर्थः-(मुनी के०) हे मुनी ! जे (मुनयः के) महर्षि एवा सा धु जनो , ते (त्वां के५) तमोने ( तमसः के०) अंधकाररूप धरित, ते नी (परस्तात् के० ) श्रागल (आदित्य के०) सूर्यना सरखा ( वर्ण के०) कांतिवाला एवा अने रागद्वेष रहितपणे करीने (अमलं के) निर्मल (परमंपुमांसं के० ) परम पुमान् एटले निःकर्म सिक एवाने (श्रामनंति के ) कहे . तथा (स्वामेव के०) तमोने (सम्यकू के०) रूडे प्रकारे (उप सन्य के०) निश्चयत्वें करी जाणीने, ते महर्षियो (मृत्यु के०) मृत्युने (ज यंति के) जीते . माटें (अन्यः के०) बीजो कोश (शिवःके) निरुपव एवो (शिवपदस्य के०) मोक्षपदनो (पंथाःके) मार्ग, (न के०) नथी ॥३॥
__ हवे सर्व देवना नामें करीने जिनने स्तवे बे. त्वामव्ययं विनुमचिंत्यमसंख्यमाद्यं, ब्रह्माणमी
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