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________________ नतीमरस्तोत्र अर्थसदित. शए तमाहे मुखजि तो निवारिदानां के०) मेघोने आबादन करवाने अशक्य बे अने चंद्रबिंबने तो मेघ आबादन करवाने शक्तिमंत ने अने तमारं मुखकमल तो (जगत् के०) त्रण जगतने (विद्योतयत् के०) प्रकाश करे ले अने चंद्रबिंब तो एक जंबुद्दीपनेज मात्र प्रकाश करे , माटे हे प्रनो! अपूर्वशशांकविंबपणुं ते तमारा मुखकमलने योग्यज डे ॥ १७ ॥ हवे प्रजुना मुखेपासें सूर्य, चंद्रमा पण निःप्रयोजन वाला बे, एबुं देखाडे बे. किं शर्वरीषु शशिनान्दि विवस्वता वा, युष्मन्मुखंड दलितेषु तमस्सु नाथ!॥ निष्पन्नशालिवनशालिनि जीवलोके, कार्य कियजालधरैर्जलनारनौः॥१॥ अर्थः-(नाथ के०) हेनाथ ! (युष्मन्मुखेंऽ के०) तमारा मुखरूप इंसु जे चंद्रमा तेणें (तमस्सु के०) अज्ञानरूप जे अंधकारो ते (दलितेषु के०)द लन करे ते पड़ी ( शर्वरीषु के०) रात्रियोने विषे उदय थनारा एवा (शशिना के०) चंडमा तेणें करीने (किं के०) शुं कार्य थवानुं ? (वा के०) अथवा (अन्हि के०) दिवसने विष उदय थनारा एवा ( विवखता के०) सूर्ये करीने (किं के ) कार्य थवानुं ? त्यां दृष्टां त कहे , केजेम (निष्पन्न के०) पाकेलां एवां जे ( शालिवन के० ) शा लिनं वन, तेणें करी (शालिनि के०) शोलायमान थयेला एवा (जीवलो के के०) मृत्युलोक तेने विषे (जलजारननैः के०) जलनो जे नार तेणें क री नम्न श्रयेला एवा ( जलधरैः केण ) मेघोयें करी ( कियत्कार्य के०) शुं प्रयोजन ? अर्थात् कांश पण कार्य सिद्धि नहिं ॥ १७ ॥ हवे ज्ञानधारायें करी अन्यदेवोने तिरस्कार करतो बतो कहे . झानं यथा त्वयि विनाति कृतावकाशं, नैवं तथा द रिदरादिषु नायकेषु॥तेजः स्फुरन्मणिषु याति यथा महत्त्वं, नैवं तु काचशकले किरणाकुलेपि॥२०॥ अर्थः-हे नाथ ! (कृतावकाशं के०) अनंत पर्यायात्मक जे पदार्थो, ते ने विषे कस्यो ने अवकाश एटले प्रकाश जेणे एवं ( ज्ञानं के) केवल Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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