SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० प्रतिक्रमण सूत्र जाणी सेवा, सर्व शब्दनुं देश तथा सर्वताने विषे दर्शन डे माटें अपरिशेष सर्वथकी उपदर्शनने माटें लोक शब्द कह्यो डे. अहींयां लोकशब्दें मनुष्यलोक साईघ्यहीपसमुज्वर्ती, ऊर्ध्व नव शत योजन प्रमाण, अधः नीचे सहस्र योजन प्रमाण तथा वली कोश्एक लब्धिवंत साधु मेरुचूलिका पर्यंत पण तपस्या करता थका होय. एम लो कने विषे जिहां जिहां साधु होय, ते सर्व साधुने महारो नमस्कार था. ए साधुऊने नमस्कार करवानो हेतु शुं ? त्यां कहे . मोदमार्गने विषे सहायता करनार होवाथी उपकारी पणाने लीधे नमस्कार करवा योग्य बे. स्तवना, प्रशंसा, गुणवर्णन करवा योग्य . जेम उमर, वृदना सुगंधी फूल उपर बेसे, तेनो थोमो एक पराग लेश बीजे फूलें जाय, एम अनेक फूलें नमी नमीने पोताना आत्माने संतुष्ट करे, पण फूलने बाधा न उपजावे, तेम साधु पण अनेक घर नमी जमीने ब लैंतालीश दोष रहित आहर शुद्ध गवेषी पोतानुंपिंपोषण करे. पांडियने पोताने वश राखे, पांचेंजियना विषयने कीपे, षट्कायजीवनी रदा पोतें करे, बीजा पासे करावे, वली सत्तर नेद सहित संयमने आराधे, सर्वजीव उपर दयाना परिणाम राखे, अढार हजार शीलांग रथना धोरी, अचल अमग्ग आचाररूप जेनुं चारित्र , एवा महंत मुनीश्वरने जयणायुक्त वंदीने पोतानुं जन्म पवित्र करीये. वली नव प्रकारें ब्रह्मचर्यनी गुप्ति पाले, बार प्रकारे तप करवाने शूरा, आत्मार्थी तथा वली आदेश, उपदेश थकी न्यारा बे, जेने जनमेलननी ईहा नथी, वंदन पूजननी वांडा नथी, एवा मुनिनु दर्शन तो जो पुण्योजम होय तोज पामीयें, ए श्री साधुने आषाढना मेघनी पेरें श्यामवर्ण ध्यायियें. ए पांचमा पदरूप साधुमंगल वखाएयु, एटले पांचमा पदनी पांचमी संपदा थ॥५॥ नावमंगल अनेक प्रकारें, तेमां ए पंच परमेष्ठीनुं प्रथम मंगल जाणवू. आशंकाः-ए पंच परमेष्ठीने जे नमस्कार करवो, ते संदेपें करवो, किंवा विस्तारें करवो? तेमां जो संदेपें नमस्कार कराय बे एम कहेशो, तो सि छ अने साधु प्रत्ये नमस्कार करवोज युक्त जे. केम के ? ए बेहुने नमन करवाश्री अरिहंत आचार्य अने उपाध्यायनुं पण ग्रहण थयुंज, कारण के ए अर्हदादिक त्रण जे जे ते पण साधुपणुं बोमता नथी, ते माटे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy