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________________ नमिकण अर्थसदित. २५३ करनारं बे. आहिं को शंका करे के, नवियानंदयरं एम न कयु अने नवियजणाणंदयरं एम कहेवानुं हुं कारण ? अने कदाचित् पूर्वोक्त पाठ कह्यो हत, तो पण अर्थमां एमज आवत. ते जेम केः-लविकोने आनंद दे नारूं बे. त्यां समाधान करे ने के, जो जन शब्दनुं ग्रहण करियें, तो अव्यव हारिक निगोदमां पण नविक जीव , तो तेने आनंद थवानो संजव ने नहीं, कारण के ते एकेडिय डे माटे मध्ये जन शब्दनुं ग्रहण कसु बे. अहीं व्यवहारराशिमां जे उत्पन्न थाय, तेने जन कहियें माटें नविक एवा जन ने आनंदकारक था स्तवन बे, एम जाणवं. वली आ स्तवन केहq ? तो के (कहाणपरंपरनिहाणं के ) कल्याण जे श्रेय तेनी परंपरा जे संतति तेनुं निदानरूप एवं बे. अहिं केटलाएक तो पदविनंजन करीने आम अर्थ करे में, ते जेम केः-(नवियजणाणं के) नविक जनोने (कखाणपरं के०) कल्याणैकस्थान एवं बे. वली केहेतुं ? तो के (परनिहाणं के०) परनिजानां एटले पर जे शत्रुर्व तेनां निज जे कपट ते उच्चाटनादि तेने (अंदयरं के०) बांधनारंडे, अर्थात् प्रकारांतरें करी एम जाणवू जे कुछ कर्मोंने स्तंजन करनारं ॥ १५ ॥ हवे था गाथायें करीने जे कोइ जयस्थानको होय, ते ठेकाणे श्रा स्तवन नण, एवां जयस्थानकोने प्रगट करतो तो कहे बे. राय जय जक ररकस, कुसुमिण उस्सनण रिक पीडासु ॥ संकासु दोसु पंथे, जवसग्गे तदय रयणीसु ॥२०॥ अर्थः-( रायनय के० ) राजनय, ( जरक के० ) यदाजय, ( रकस ) के०) रादसनय, ( कुसुमिण के० ) कुखप्ननय, तथा (उस्सउण के) कुशकुन, एटले उष्ट शकुननय तथा (रिक के०) अशुल ग्रह, ते सर्वनी (पीमासु के ) पीमाउँने विषे, तथा ( दोसुसंकासु के०) बे संध्या ते एक प्रातः काल अने बीजी सायंकाल तेने विषे, तथा (पंथे के० ) पंथ जे अरण्यादिक मार्ग तेनेविषे. तथा (उवसग्गे के७) देव अने मनुष्यकृत जपसनेने विषे ( तह के) तथा ( य के) च ते समुच्चयार्थवाचक बे. रय णीसु के० ) रात्रियोने विषे ॥२०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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