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________________ शत प्रतिक्रमण सूत्र. देश संबंधी देवकुलपाट गामने विषे चोमासु रह्या हता, ते समयमां श्री संघने विषे अकस्मात् मरकीनो महीटो उपाव उत्पन्न थयो. ते उपवें पीमित एवा संघनां लोकोने जोर जेमने स्वगुरु सान्निध्यथी सद्विद्या प्राप्त थयेली हती एवा अने करुणासहित हृदयवाला श्रीमुनिसुंदरसूरि, तेम णे श्रीसूरिमंत्रना आम्नायथी गर्जित एवं आ संतिकरनामा स्तोत्र रच्युं, ए ना पठनपाठनथी तथा ए स्तोत्रमंत्रित जल गंटवाथी श्रीसंघने समस्त मरकीनो उपजवशांत थयो, त्यारथी आ स्तोत्रने पठनपाठनादिकनो संप्रदाय चाल्यो , ते स्तोत्र, अर्थसहित लखीयें बैयें ॥ संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जयसिरी दायारं ॥ समरामि नत्त पालग, निवाणी गरुडकयसेवं ॥१॥ अर्थः-श्रा ठेकाणे अहं ए कर्तृपद अध्याहारथी लेवु. एटले ( अहं के) हुँ (संति जिणं के०) वर्तमान चोवीशीना शोलमा तीर्थंकर श्रीशां तिजिन, ते प्रत्ये (समरामि के०) मनमां चिंतवन करुं बुं, एटले ध्यान करुं बुं. ते श्रीशांतिनाथ केहवां ? तो के (संतिकरं के०) सर्व उपवना निवारण करनारा बे, केम के? प्रज्जु गर्नगत थया, तेवारे एमनी माताना पग धोयेला जलना बांटवाथकी लोकोने मरकीनो उपजव शांत थयो, तेथी माता, पितायें शांतिनाथ एवं नाम पाड्यु. वली श्रीशांतिजिन केहवा ? तो के (जगसरणं के०) जगन्निवासी लोक तेना शरण एटले नयनिवारण करनार , वली (जयसिरी के०) जय ते प्रधान एवी श्री जे लक्ष्मी, अथ वा जय ते जय अने लदमी जे शोना तेने जयश्री कहियें, ए बेहु वानांना ( दायारं के० ) दातार बे. वली केहवा ? तो के (नत्त के० ) पोताने जजनारा एवा जे नक्तलोक तेमने (पालग के०) पालन करनारा बे, एटले तुष्टि,पुष्टिना देनारा बे, अर्थात् नक्तने विघ्नविनाशपणायेंकरी हितकार क बे, वली (निवाणी के०) नीर्वाणी नामक देवी तथा (गरुक के०) गरुम नामक यद, ए बेहुयें (कयसेवं के०) करेली ने सेवा जेमनी एवा ने ॥१॥ ॐ सनमो विप्पोसदि पत्ताणं संतिसामिपायाणं ॥ ाँ स्वादामंतेणं, सबासिवरिअहरणाणं ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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