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________________ श्रावक पाक्षिकादि विस्तारातिचार. งง अभ्यंतर तप पायवित्तं वि० ॥ सुधुं प्रायवित्त परिवज्युं नहीं, श्रालोण ती सूधी टीप कीधी नहीं, सूधो तप पहोंचाड्यो नहीं, साते नेदें विनय न कीधो, दश नेदें वैयावच्च न कीधो, पंचविध सजाय न कीधोकषाय वोसराव्यो नहीं, दुःखक्षय कर्मक्षय निमित्त काउस्सग्ग न कीधो, शुक्लध्यान, धर्मध्यान, ध्यायां नहीं खार्त्त, रौद्र, ध्यान ध्यायां ॥ अभ्यंतर तप व्रत विषयो नेरो जे कोइ अतिचार पक्ष दिवसमांहि दुवो० ॥ १ वीर्याचार प्रण अतिचार ॥ अगूहिय बलविरियो० ॥ मनोवीर्य, धर्म ध्यान तो विषे उद्यम न की धो. पडिकमणे देवपूजा धर्मानुष्ठान, दान, शील तप, जावना, बती शक्तियें गोपवी, आलसें उद्यय न कीधो, बेगं पमिक्क मणुं कीधुं, रूमां खमासमण न दीघां ॥ वीर्याचार विष ने रो० ॥२०॥ सिद्धाणं करणे० ॥ प्रतिषेध, अजय, अनंतकाय, महापरिग्रह, जे कोइ प्राणातिपात, मृषावाद, श्रदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोज, राग, द्वेष, कलह, श्रन्याख्यान, पैशुन्य, रति रति, परपरिवाद, मायामृषावाद, मिथ्यात्वशस्य. ए अढार पापस्थानकमांहे कीधां, कराव्यां, अमोघ हुए, ते सविहुं मन, वचन, कायायें करी मित्रामि डुक्कडं ॥२१॥ एवंकारें साधु श्रावकतणें धर्मे सम्क्त्वमूल बार व्रत, एकशो चोवीश तिचार पक्ष दिवसमा सूक्ष्म, बादर, जाणतां जाणतां दुवो दुइ, ते सवि हुं मन, वचन, कायायें करी मिठामि डुक्करुं ॥ २२ ॥ इति ॥ ५३ ॥ ॥ श्रथ श्रावकपाक्षिकादि विस्तारातिचार प्रारंभः ॥ ॥ नाणं मि दंसणं मिश्र, चरणमि तवंमि तहय विरियंमि ॥ श्ररणं श्रायारो; श्र एसो पंचढ़ा जरियो ॥ १ ॥ ज्ञांनाचार, दर्शनाचार चारित्रा चार, तपाचार, वीर्याचार, ए पंचविध श्राचारमां अनेरो जे कोइ अति चार पक्ष दिवसमांहे सूक्ष्म, बादर, जाणतां अजाणतां दुर्ज होय, ते सवि ढुं मनें, वचनें, कायायें करी तस्स मिठा मि डुक्करं ॥ १ ॥ तत्र ज्ञानाचारें श्राव अतिचार | काले विषए बहुमाणे, उवहाणे त दय निन्दवणे ॥ वंजण अब तडुनए, अहविहो ना मायारो ॥ २ ॥ ज्ञा न कालवेलामा नपि गुणितं नदिं, श्रकालें जयो. विनयहीन, बहुमा नहिन, योगउपधानहीन, अनेरा कन्हे जी अनेरो गुरु को, देव गुरु वांदणे पक्किमणे सजाय करतां जातां गुणतां. कूमो अक्षर कान्हे, २८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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