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________________ २०६ प्रतिक्रमण सूत्र. जे प्राणीयो तेमना (मूर्ध्नि के० ) मस्तकने विषे (खुवंतोः के०) बुंगयमान तथा वली केहवा ? तो के ( निर्मलीकारकारणं के ) निर्मल एटले पा परहितपणाना कारण एटले हेतुजूत जे. आहिं वंदन करनार प्राणीनामस्त क उपर नगवंतना पादनखनी कांति पडे बेतेनी उपर कवि उत्पेदा करे ने के ( वारिप्लवाश्व के०) वारि जे जल तेना प्रवाहज जाणीयें होय नहिं ? ॥२३॥ हवे बावीशमा श्रीअरिष्टनेमि जिनने स्तवे . यज्वंशसमुजः, कर्मकदहुताशनः ॥ अरि ष्टनेमिनगवान. भूयामोऽरिष्टनाशनः ॥२४॥ अर्थः-(अरिष्टनेमिः के०) अरिष्टनेमिनामा (नगवान् के०) नग वान्, ते ( वः के ) तमारा (अरिष्टनाशनः के० ) अरिष्ट जे उपज्व, तेने नाश करनार एवा (नूयात् के) था. ते अरिष्टनेमि केहवा ? तो के ( यऽवंश के० ) यादववंश तप जे ( समुद्र के० ) समुन, तेने उल्लास पमामवाने (छः के०) चंद्रमासदृश बे. वली ते केहवा ने ? तो के ( कर्म के० ) कर्म जे झानावरणादि अष्टविध कर्म, तप (कद के०) कद जे वनखंग तेने विषे ( हुताशनः के० ) अग्निसमान बे. अर्थात् शु क्लध्यानानलें करी सर्व कर्म नस्म कस्यां वे जेणे एवा ॥ २४ ॥ हवे त्रेवीशमा श्रीपार्श्वनाथ जिनने स्तवे हे. कमठे धरणीजे च, स्वोचित्तं कर्म कुर्वति ॥ प्रस्तु ल्यमनोरत्तिः, पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः ॥२॥ अर्थः-( पार्श्वनाथः के०) श्रीपार्श्वनाथ, ते (वः के०) तमारी (श्रिये के) ज्ञानादि लक्ष्मी तेने अर्थे ( अस्तु के०) था. हवे ते श्रीपार्श्व नाथ केहवा ? तो के ( कमठे के०) कमग्नामें पूर्वनवनो वैरी एवो जे मेघमाली देवता तेने विषे, (च के०) वली (धरणीजे के०) पार्श्वनाथ प्रजुयें बलतो उगायो एवो जे सर्प, ते मरीने धरणीं थयो ते धरणी अने विषे, (तुल्यमनोवृत्तिः के ) तुल्य डे मननी वृत्ति जेमनी एवा बे. वली णे कमठ तथा धरणींछ केहवा ? तो के (स्वोचितं के०) पोताने योग्य एवं ( कर्म के ) कर्म तेने (कुर्वति के० ) करे जे. अर्थात पोत पोतार्नु उचित कर्म करे जे. जेम के कमठ , ते उपसर्ग करे , अने धर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003850
Book TitlePratikraman Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1906
Total Pages620
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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