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प्रतिक्रमण सूत्र. सर्व अतिचारप्रत्ये अहीं पांच अणुव्रत ते पांच मूलगुण कहियें, अने ते पांचने विशेष गुण करनारा दिशिप्रमाणप्रमुख त्रण गुणव्रत जाणवां; वली चार शिदाव्रत, ते थोमा कालनां मानवाला जाणवां. ते जेम शिष्यने विद्या नणावीने अभ्यास कराववा योग्य , तेम ए सामायिकादिक चार शिदाव्रतनेविषे पण सदा उद्यम कराववा योग्य ॥॥
हवे प्रथम स्थूलप्राणातिपातविरमणनामा अणुव्रत कहे . पढमे अणुवयंमि, थूलग पाणाश्वाय विरई ॥
आयरिश्रमप्पस, श्च पमायप्पसंगणं ॥५॥ अर्थः-(पमाय के) पांच प्रकारना प्रमाद तेने विषे, (प्पसंगणं के) अत्यंतपणे प्रसंग एटले प्रवर्तवू, तेने प्रमादप्रसंग कहिये, तेणें करीने तथा आकुट्या दिकें करीने (अप्पस के०) अप्रशस्त अशुन माग एवां अज्ञानमिथ्यात्व कषायादिक औदायिकत्नाव हुए बते, (थूलग के) स्थूल बादर मोटको जे जावू, आवद्यु, फरवू, इत्यादिक लदणे करी प्रगट जणाय , तथा संकल्प निरपरांधि निरपेद, बेंजिय, तेंघिय चरिंजिय, पचेंडेिय, त्रस जीव ने संबंधी (पाण के०) आयु, इंडिय, प्राण, तेनां (अश् वाय के) अतिपात एटर.._तेनी (विर के०) विरति निवृत्ति. तेथकी (आयरिश के कमवू उद्धंघवं ते (श्व के०) अहींयां पढमेअणुव्वयंमि के०) प्रथम तने विषे अतिचार जाणवो. अथवा स्थूलप्राणातिपातनिवृत्ति प्रत्ये श्रियीने जे जे दोष (आयरियं के०) थाचस्यो सेव्यो होय, आगली गाथामां पडिकमिश ॥ ५ ॥
हवे प्रथम व्रतना पांच अतिचार कहे ले. वद बंध गवि जेए, अनारे नत्तपाणवुए ॥
पढमवयस्स इआरे, पमिक्कमे देसियं सवं ॥१०॥ अर्थः-कषायना वशथकी छिपदादिक जीवने लाकमी प्रमुखें निर्दयता यें करी, एक (वह के० ) वध, हणवू, ताम, प्रहार देवो, घायल करवो, बीजो (बंध के) दोरमादिकें करी बांधवं, त्रीजो (बवि के०) बलद समारवा, शरीरना कान अने नासिकादिक अवयवोने(एके)बेदवा,चोथो थोमोजार उपामवानी शक्तिवाला एवा पोठीया गामला वृषनादिकोनी उपर लोचना
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