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प्रतिक्रमण सूत्र.
॥ स्रग्धरा बंद ॥ आमूलालोलधूलीबहुलपरिमलालीढलोलालिमाला, ऊंकारारावसारामलदलकमलागारन्नूमीनिवासे ॥ गयासंनारसारे वरकमलकरे तारदारानिरामे, वाणीसंदोहदेदे नव विरदवरं देहि मे देवि सारं ॥४॥इति ॥१३॥
अर्थः-(देवि के) हे श्रुतदेवि ! ( मे के) मुजने (सारं के०)प्रधान एवो ( नवविरह के०) संसारनो जे विरह तेने मोद कहियें, तेनों (वरं के० ) वरदान एटले मोदसंबंधि वरदान, तेने ( देहि के० ) दे, आप. अहीं पांच संबोधनयुक्त एवी देवी ,माटें ते पांच संबोधन कहियें बैयें प्रथम (आमूल के०) मूल लगें (आलोल के) चपल ते मोलतुं एवं, वली (धूली के ) मकरंद सुगंधना कणीया तेना ( बहुल के ) घणा (परिमल के०) सुगंध, तेने.विषे (आलीढ के) आसक्त मग्न एवा जे (लोल के०) चपल ( अलि के) चमराठ तेनी ( माला के०) श्रेणी तेना (ऊंकार के० ) गुंजार तेना (आराव के०) शब्द तेणे करीने जे(सार के०) प्रधान ने एवं, वली ( अमल के) निर्मल एवां ( दल के०) पांदमां तेणे करीने सहित एवं ( कमल के) जे कमल तेनी उपर, (आगार के) जुवन ने एटले घर ने जेनु, तेना मध्यनागनी (नूमी के) नूमिने विषे शयन चेन करवानी अतिरमणीय शय्या ने तेने विषे ( निवासे के) निवास एटले वसवं ने जेए प्रथम पदें करी प्रथम संबोधन जाणवू. हवे वली (बाया के०) कांति तेनो जे (संजार के) समूह ते समूहें करी ( सारे के०) प्रधान डे माटे हे बायासंजारसारें! ए बीजा पदें करी बीजं संबोधन जाणवू. वली (वरकमल के० ) प्रधान कमल ने जेना (करे के०) हाथने विषे तेना संबोधने हे वरकमलकरे! ए त्रीजुं संबोधन जाणवू. वली ( तार के ) देदीप्यमान एवा ( हार के) हारें करीने (अनिरामे के०) सुंदर डे हृदय जेनुं अथवा ( तार के) नेत्रनी कीकी डे (हार के०) सुरनरने हरावनारी जेनी तेणें करी (अनिरामे के०) सुंदर बे. अहीं हे तारहारानिरामे! ए चोथें पदें करी चोथु संबोधन जाणवू. हवे (वाणी के०) छादशांगीरूप वाणी तेनो ( संदोह के०) समूह
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