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नवे पास जिणचंद ॥ ५॥ इति ॥ ॥ अथ संतिकरस्तोत्र तृतीयं स्मरणं ॥
॥संतिकरं संति जिणं, .जगलरणं जयसिरी दायारं ॥ समरामि जत्त पालग, निवाणी गरुक कय सेवं ॥ १ ॥ ॐ सनमो विप्पोसहि, पत्ताणं संति सौमि पोयाणं पाहाँ स्वाहा मंतेणं, सबासिवरिया रणाणं ॥२॥ संति नमुक्कारो, खे लोसहिमाश्ल द्धिपत्ताणं ॥ माँ डी नमो सवोसहि, पत्ताणं च देशसि रिं ॥३॥ वाणी तिहुअणसमिणि सिरि देवी जस्कराय गणि पिळगा
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