________________
कल कमलदललोअणि आह ॥२६॥ दीवयं ॥ पीण निरंतर थण जर वि. णमिय गायलयाहिं ॥ मणि कंच ण पसि ढिल मेहल सोहिय सोणि तमाहिं ॥ वरखिखिणि नेउर सतिलय वलय विजूसणियाहिं ॥ र कर चउर मणोहर सुंदर दंसणि आहिं ॥ २७॥ चित्तरकरा ॥ देव सुंदरीहिं पाय वंदियाहिं वंदिया य जस्त ते सुविकमाकमा अप्पणो निमालएहिं मंमणोमणपगारएहि केहि केहि वि अवंग तिलय पत्तलेह नामएहिं चिल्लएहिं संगय गयाहि
Jain Educationa Internatioresonal and Private Use apply.jainelibrary.org