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जुवि दिविज, महिां सयय मुवतं च जि.
मे ॥ ७ ॥ संगययं ॥ गुत्तममुत्तम नित्तंम सत्तधरं, छाजव मद्दवखंति विमुत्ति समाहि निहिं ॥ संतिकरं पणमामि दमुतम तिहुयरं, संति मुणी मम संति समादिवरं दिसन ॥ ८ ॥ सोवा
यं ॥ सावति पुछ पछिवं च वर दहि मय पत्र विविन्न संघियं ॥ थिर सरिब व मयगल लीलाय माण वर गंधदवि पहाणं पक्षियं संघ वारिहं ॥ दहि छ बाहु धंत कग रुाग निस्वदय पिंजरं, प
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