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चतुर्थ खण्ड
अनन्त पुरुष की जय-यात्रा
मेरी बाला-तपस्विनी, सर्वस्व-त्यागिनी माँ
स्वस्ति श्री चम्पा-बा के योग्य, जिनसे पायो दृष्टि-प्रधान अध्यात्म की मंत्र-दीक्षा
'अनुत्तर योगी' में शब्द-देह धारण कर सकी है
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