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नहीं उतरोगे? तुम्हारा उन्नत मंदराचल-सा कंधा देख कर मेरा युगों से निष्कर्म हो पड़ा हल चलने को उद्यत हो उठा है । मनुष्यों के तन की माटी जड़ित हो गई है। लो, उनके शतियों से जड़ीभूत हो गये रक्त में हल चलाओ · · !' ___मैं अपलक, चुपचाप मुस्कुराता हुआ उन भद्र पुरुषोत्तम को ताकता रहा ।
और मेरी चेतना अन्तर्लीन हो कर, दिगन्तों तक फैली वसुन्धरा के बंजरों में व्यापती हुई, उनके नीरस सूखे गर्भदेशों में धंसती चली गई। . .
उधर गोशालक कहीं से प्रेत का वीभत्स रूप धारण कर, गाँव के आँगन में खेल रहे बालकों के बीच आ कूदा है। विपुल लोमष काले भालू की तरह हुँकारता और छलांगें मारता वह बालकों को डरा रहा है। मारे भय के निर्दोष बच्चे चीखते हुए बेदम भागने लगे। बदहवास हो कर ठोकरें खा-खा कर गिरने लगे। किसी का सर फूट गया, किसी की नाक कुचल कर नथुनों से रक्त बहने लगा, तो किसी के होट कट गये।
भयार्त बालकों की चीखें सुन कर, गाँव में से उनके मां-बाप दौड़ आये । हूल्कार कर गोशालक उन पर भी लपका। उन्हें पहचानने में देर न लगी कि यह कोई दुष्ट बहुरूपिया है । आतंक जमाकर आनन्द लूटने का कोतुक कर रहा है।
सो कुछ बलिष्ठ पुरुष उस पर टूट पड़े। और जम कर उसकी कुटमपंचमी करने लगे। घायल कुत्ते की तरह गालियाँ भूकता, गोशालक पिटाई का आनन्द भी उसी सम भाव से लूटने लगा। ___ तभी मन्दिर की ओर से दौड़ता हुआ, एक वृद्ध पुजारी हाँक मारता आ पहुंचा।
'अरे इसे मार कर क्या मिलेगा ? इसका नग्न गुरु मन्दिर के देवकक्ष में घुसा बैठा है और उसी के आदेश से तो यह उपद्रव मचा रहा है। चल कर उसी की खबर लो।'
'चोर' - 'चोर · · · चोर' : पुकारते कई लठैत, मन्दिर में घुस आये। एक साथ कई लाठियों के वार मेरे मस्तक पर सन्नाने लगे : मैं शिल्पीभूत-सा उत्सगित हो रहा।
ठीक लाठियां मेरे तन पर गिरने की अनी पर, देव-प्रतिमा में से ध्वनित हुआ : 'सावधान !' और देवासन से उतर कर बलदेव ने, अपना हल उठा कर उन लठतों पर प्रहार किया । अनायास प्रहारकों पर छा कर मेरी दक्षिण भुजा उनके माथों पर फैल गई। ताण पा कर कई कण्ट एक साथ पुकार उठे : 'वाहिमाम् देवता ! • • .'
और प्रहार की मुद्रा में स्तंभित रह गये हल को खींचकर मैंने अपने दायें कन्धे पर धारण कर लिया।
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