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________________ निर्देशिका 'अनुत्तर योगी के प्रथम खण्ड में महावीर की पूर्व जन्मान्तर-कथा और गर्माधान से लगाकर, तीस वर्ष की वय में उनके गृह-त्याग तक की कथा को रचा गया है। आगमों और दिगम्बर ग्रंथों में महावीर के इस कुमार काल की कोई खास घटनाएँ नहीं मिलती। जो विरल तथ्य मिलते हैं, उनका उपयोग कर लिया गया है। ...पर तीस वर्ष की वय तक अपने समय का यह सूर्य कसे जिया, इसका उत्तर दिये बिना उपन्यास सम्भव ही नहीं हो सकता था। फलतः उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री और वेद-उपनिषद् तथा बौद्ध आगमों में मैंने उस काल-खण्ड और काल-चेतना का अन्वेषण किया। नतीजे में महावीर का निजी पारिवारिक परिवेश, उसमें घटित अनेक सम्बन्ध-सूत्र और पात्र तथा उस काल की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थिति सुनिश्चित रूप से मुझे उपलब्ध हो गई। और उसके बीच केन्द्रीय सुमेरु-पुरुष के रूप में मैंने जब महावीर का साक्षात्कार करना चाहा, तो उनका का एक जीवन्त सर्वांगीण व्यक्तित्व अपनी सम्पूर्ण सम्भावनाओं के साथ मेरे कल्प-वातायन पर झलहलन्त उभरता आया। फलतः सृजन के स्तर पर उनकी पुनर्रचना मेरे लिये सहज सम्भव हो गई। ध्यातव्य है कि इस सृजनात्मक पुनर्रचना में पर्याप्त मात्रा में अनायास विपुल अन्वेषण, उद्घाटन, आविष्कार और अनुसन्धान कार्य भी हो सका है। क्योंकि यह पुनर्रचना कल्पदर्शी होते हुए भी, उपलब्ध तथ्यों और उनकी संकलना पर आधारित है, और उस काल-खण्ड की मौलिक इतिहास-दार्शनिक व्याख्या से आलोकित है। इस तरह बिना किसी इरादे के ही, इस ग्रंथ के तीनों खण्ड एक निराले शोध-ग्रंथ और इतिहास-दार्शनिक अध्ययन के रूप में भी मुझे उपलब्ध हो गये। ० ० ० प्रस्तुत द्वितीय खण्ड में, गृह-त्याग के उपरान्त श्रमण वर्द्धमान का साढ़ेबारह वर्ष व्यापी साधना-तपस्या काल समाहित है। और अन्ततः उसकी फलश्रुति के रूप में केवलज्ञान को उपलब्ध हो कर, महावीर के अर्हत् होने तक की कथा स्वभावतः इस खण्ड की विषय-वस्तु निर्मित करती है। तपस्याकाल में आरम्म से अन्त तक यह दुर्दान्त श्रमण अनेक प्राकृतिक, मानुषिक, दैविक आक्रान्तियों, बाधाओं और अग्नि-परीक्षाओं से गुजरता है । जैन परिभाषा में इन परीक्षाओं को उपसर्ग कहा जाता है। इन उपसर्गों से गुजरते हुए श्रमण प्रकृति, मनुष्य तथा परोक्ष देवी विश्वों में व्याप्त उन तमाम आधारभूत बाधाओं और Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003846
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages400
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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