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महीनों की महासमाधि से बाहर निकल आया हूँ। जीवन्मुक्त हो कर, जीवन-जगत में सदा के लिये लौट आया हूँ। साढ़े बारह वर्ष-व्यापी महामौन, वाणी के झरनों में फूट पड़ने को कसमसा उठा है। सम्वाद और सम्प्रेषण के नये आकाश दिगन्तों में खुल रहे हैं।
त्रैलोक्येश्वर का अनहद नाद अन्तरिक्षों में विप्लव के घोष की तरह घहरा रहा है।
सकल चराचर का वल्लभ, उनके पास घर लौट आया है।
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