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________________ ३५ fat के अहिंसक कान्ति-पथ के एकनिष्ठ अनुचारी और साधक इस आजन्म ब्रह्मचारी युवा के भीतर बार-बार मुझे एक छुपे महापुरुष का दर्शन हुआ है । इस पुस्तक के अन्तर - बाह्य कलेवर को सँवारने का सारा भार मानकभाई के साथ वे भी चुपचाप अपने ऊपर उठाये हुए हैं । समस्त मध्य प्रदेश के श्रद्धेय लोक-पिता और वात्सल्य की चलती-फिरती मूरत श्री मिश्रीलाल भैया, सौजन्यमूर्ति पं. नाथूलाल शास्त्री, और धर्मानुरागी दानेश्वर बाबू राजकुमारसिंह कासलीवाल आदि 'श्री वीर - निर्वाण-ग्रंथप्रकाशन समिति' के आधार स्तम्भ उन सभी अग्रज धर्म-बन्धुओं का अतिशय कृतज्ञ हूँ, जिनके उदात्त साहसिक समर्थन और दाक्षिण्य के बल पर ही, ऐसी दुःसाहसिक रचना मैं कर सका हूँ । मेरी सरस्वती के अनन्य प्रेमी, और मेरी संकट-घड़ियों के निष्कारण सहाs, स्व. महाकवि दिनकर को इस क्षण मैं कैसे भूल सकता हूँ। अपनी जीवन-सन्ध्या में दिल्ली विश्वविद्यालय में बोलते हुए एक बार उन्होंने कहा था : 'वीरेन्द्रकुमार जैन की कविता में इस देश की मिट्टी की सुगन्ध साकार हुई है। कितनी साध थी मन में कि दिनकर भाई कब मेरी इस रचना को पढ़ें। पर आज वे भव्य आर्य-पुरुष, पार्थिव देह में हमारे बीच नहीं हैं । उनके चरण छू कर, उनके वत्सल हाथों में यह कृति सौंपने का सौभाग्य मेरा नहीं रहा । • दिनकर भाई, तुम तो इतने ज़िन्दा थे, हो, कि मर सकते ही नहीं । जहाँ भी इस समय तुम हो, भगवान मेरी इस रचना को तुम्हारे हाथ में पहुँचायें। मुझे आशीर्वाद दोगे न, कि मेरी आजीवन तपस्या का यह फल कृतकाम हो सके । इस बीच पूज्य जैनेन्द्रजी के आशीर्वाद की छत्र-छाया में मुझे अटूट बल प्राप्त होता रहा । सदा की तरह इस बार भी वे मेरी हर समस्या के सहज समाधान होकर रहे। राजस्थान विश्व विद्यालय के एक स्तंभ और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के राजनीति-शास्त्री डॉ. शान्तिप्रसाद वर्मा मेरे आदि afar गुरु और अनन्य स्नेही अग्रज रहे हैं। इस रचना काल में शान्ति भाई साहब के पत्र सतत मेरे भीतर की उस अदृष्ट महानता को उभारते रहे, जिसकी प्रत्यभिज्ञा हो, किसी लेखक से उसका श्रेष्ठ सृजन करवा सकती है। आज से ३०-४० वर्ष पूर्व एक दिन उन्होंने ही मेरे भीतर अनायास उस अन्तर- आत्मिक महिमा का बीज अंकुरित कर दिया था । और देश-काल की Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003845
Book TitleAnuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVirendrakumar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1979
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size6 MB
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