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से परे होकर यहाँ जीव की मूर्छा का उत्पीड़न और घुटन पराकाष्ठा पर है।. . .
और एक पर एक, ऊपरा-ऊपरी छह और पृथ्वियों के पटल अपने आप में उलट-पुलट रहे हैं। तमःप्रभा, धूम्र-प्रभा, पंक-प्रभा, बालुका-प्रभा,शर्करा-प्रभा, रत्नप्रभा। • • 'पूरे सात नरकों को एक साथ देख रहा हूँ। उनका भिन्नात्मक बोध नहीं पा सक रहा हूँ। गड्ड-मड्ड होती हुई, विकराल जन्तुओं, पशुओं, नारकियों, मानवों, देवों की एक आलोड़ित राशि : एक विराट् नसैनी पर आवागमन करती हुई, परस्पर टकराती, धक्के खाती, एक-दूसरे को शून्य में फेंकती, उछालती, एक पूरी संसति । विशुद्ध यातना के ये चिरन्तन अँधियारे लोक, अपने-अपने छोर पर विविध वर्णी प्रभाओं से जैसे आवेष्टित हैं । अन्धकार, धूल, धुंआ, पंक, बालू, कीले भी अन्ततः जैसे किसी प्रभा की गोद में है। · · महातमस् अपने आप में अन्त नहीं : इसकी पराकाष्ठा पर प्रकाश ही खड़ा है। अपार पीड़क हो कर भी, पाप की कोई सत्ता नहीं। वह निरी एक विभावात्मक माया है। · · पर अपनी ही आत्मच्युति से रचित इन नरकों को स्पष्ट देख रहा हूँ। अन्धता और घटाटोप अंधियारों के इन प्रसारों में यातनाओं के विविध और असंख्यात् बिल हैं, विवर हैं, वापियाँ हैं। और वे सब अपनी गहराइयों में गुणानुगुणित होते चले गये हैं। जीव के आबद्ध कर्मों के अनन्त शाखाजाल : ऐंठन की बेशुमार ग्रंथीभूत सर्प-राशियाँ। आत्म-पीड़न और पर-पीड़न का अन्तिम, तात्विक, नग्न संघर्ष । एक अकल्पनीय तुमुल घमासान। • • ‘जीव का कपट खुद ही, कीले बन कर, अपने आवरणों और ग्रंथियों को छेद रहा है। मान अपनी ही शूली बन अपनी सीमाओं को भेद रहा है। क्रोध अपना ही कुठार बन अपनी आत्मनाशी प्रमत्तता के पर्दे फाड़ रहा है । अधोगामी काम अपने ही स्पर्श-घर्षण के आघातों से लहुलुहान, अतृप्त, पराजित, ऊपर की ओर फेंक दिया गया है। भयावह अग्नि-कुण्डों सी सहस्रों योनियों में लिंगाकार हो कर भिदता, अन्धा, संत्रस्त, पछाड़े खाता, मूच्छित हो कर भी, कामात्मा नीचे नहीं ऊपर की
ओर उछाल दिया गया है। बड़ा से बड़ा पाप भी जीवात्मा को एक हद के आगे, नीचे नहीं गिरा सकता। क्योंकि अन्ततः आत्मा का स्वभाव पतन नहीं, उत्थान है। अधोगमन नहीं, ऊर्ध्वगमन है। . .'
'मान, इस भयावह मृत्यु के बीच भी, तू कैसी उद्बोधक, चरम आशा की वाणी बोल रहा है। ..
'लेकिन मां, लग रहा है, जाने कितने जन्मों में, कितनी बार इन नरकों में मैं भटका हूँ। बहुत परिचित और भोगे हुए यथार्थ सी लग रही हैं, यहाँ की तमाम
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