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-- देख रही हूँ, हिरण्यवती के जलों में उषा आज नहाने को नहीं उतरी है। एक काली बदली से किंचित् झांक कर, वह लौटी चली जा रही है। दिवो दुहिता ने आज नहीं छोड़ी हैं अपनी नयी किरणों की गौएँ, इस तटाञ्चल में। वह अपने मागे-आगे अपनी धेनुओं के यूथ को लौटा लिये जा रही है । हिरण्या के कछार में आज स्वर्ण शस्य लुप्तप्राय हैं। उसके उज्ज्वल जलों में काले रक्त की लहरें उफन रही हैं। · · ·आह, दिगन्तों में गायत्री नहीं गूंज रही। वहाँ प्राणियों की चीत्कारें हैं; चटखती अस्थियों और चड़चड़ाती चरबी से वायुमण्डल उद्विग्न और मलिन हो गया है। लोक-व्यापी मांस-गन्ध से प्राण घुट रहे हैं : शवों से पट गयी है धरणी। सरस्वती तीर के तपोवनों में कदली-पत्रों की पावन पत्तलों पर पविव मधुपर्क नहीं, चटचटाती चरबी, अस्थियों और नसों के स्तूप सजे हैं। कल्मष से अवरुद्ध इस जड़त्व में मंत्र-वाणियों का दम घुट रहा है। ऋग्वेद की ऋतम्भरा धारा भंग हो गयी है।
· · कितना समय बीत गया, सामने की यज्ञशाला अवसन्न पड़ी है। आलेपनहीन वेदी सूनी पड़ी है। हवन-कुण्ड अन्धे कुएँ-सा मुंहबाये खड़ा है । घृत-कुम्भ में रूक्ष अन्धकार ने आश्रय पा लिया है। अरणि धूल से आच्छादित है । हव्य-चषक म्लान और उदास पड़े हैं। प्यासे द्रोण सोम-सुधा को तरस रहे हैं । चमु कटे हुए हाथपैरों की तरह छितरे पड़े हैं। छिन्न-मस्तक धड़ की तरह विकलांग यज्ञ-देवता की छाया सारी यज्ञशाला में मँडला रही है। इस समूची ब्रह्मपुरी में तोनों यज्ञसंध्याएँ, मन्त्रोच्चारहीन सूनी ही बीत जाती हैं। · ब्राह्मणत्व क्लान्त और निस्तेज हो गया है। अरे, यज्ञ क्या हमारे किये हो सकता है ? यज्ञ-पुरुष स्वयम् ही मानो रूठ कर कहीं चले गये हैं ! • • देख रही हूँ, वे हिरण्या-तट के उस सप्तपर्ण-वन में, पीठ फेरे दूर-दूर चले जा रहे हैं। क्या उपाय है उन्हें मनाने का ? हमारे हृदयों में वे स्वयम् ही जब तक जागृत न हों, उन्हें कौन लौटाकर ला सकता है ? ___.. 'लो, आर्य ऋषभदत्त नदी-स्नान करके लौट रहे हैं। कभी इस पीताम्बर में, ये स्नान कर लौटते हुए, पूषन् की तरह प्रतापी और कान्तिमान लगते थे। आज मानो इनके पैरों में गति ही नहीं है।
'देवि, देख रहा हूँ, गयी सारी रात तुम जागती रही हो। और ब्राह्म मुहूर्त से ही इस शिलातल पर मूर्तिवत् बैठी हो। यह कैसा विषाद छा गया है तुम पर?'
'भूदेव स्वयम् ही कहाँ प्रसन्न हैं ? अर्धाङ्ग का अर्धाङ्गिनी से क्या छुपा है ?'
'तुम्हारे रहस्य को कब थाह सका हूँ, नन्दा? • • •दिनों हो गये, बात तक नहीं होती। इस गंभीर मौन का कारण जान सकता हूँ ?'
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