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इन स्वर्णकारों और रल-शिल्पियों के द्वारा तराशित, आकृत, रचित, खचित आमरणों, म कुट-कुण्डलों, मणि-दर्पणों, रत्नहारों और कक्ष-वातायनों में मनुष्य की सौन्दर्य-चेतना दिव्य और अलौकिक के राज्य में अतिक्रान्त हो जाती है । इन हस्तिदन्तकारों द्वारा निर्मित वीणाएँ दुर्मत्त मातंगों, व्याघ्रों और दुर्जेय सुन्दरियों के मनों को वशीभूत कर लेती हैं। सम्राटों, श्रेष्ठियों, श्रीमन्तों और अभिजातों के ऐश्वर्य-स्वप्नों को ये रूपायित करते हैं। उनकी कल्पना में भी न आ सके, ऐसे सौन्दर्य के अब तक अचिन्त्य, अभावित प्रदेशों के द्वार अपनी ललित कलाओं में ये अपनी अपूर्व कल्पना-शक्ति से मुक्त कर देते हैं। ये रक्तमांस और दुर्गन्धित हाड़-चाम, श्लेष्म-मल से भरे मर्त्य नर-नारी के तन-मन और चेतन को अगम्य वैभव-विलास की अमरावती में अमरता का स्पर्श-बोध करा देते हैं। दिव्य रूपान्तरों के ये स्वप्न-स्रष्टा कलाकार सेवक-वर्गी हैं, सम्पन्नों, समर्थों, राजेश्वरों और राजेश्वरियों के पौर-द्वार पर अपने अस्तित्व-साधन के याचकः हैं। साधारण प्राणिक वृत्तियों और मनोवासना से मनुष्य को महाभाव के रसराज्य तक उठा देने की प्रतिभा-शक्ति के धनी ये कलाकार अपने अन्नदाताओं की निगाह में निरे कारीगर हैं; रत्न-निधियों के स्वामी अभिजात वर्ग के ये कृपापात्र हैं, राज्याश्रयी हैं।
· · 'मैंने गायकों, वादकों, नर्तकों की वसतिकाएं भी देखी हैं। मनुष्य के भावराज्य में ये सौन्दर्य, रति, काम, प्रीति, प्रकृति, ऋतुबोध, वातावरण, ऐन्द्रिक संवेदन और अनुभूतियों की सूक्ष्मतम लीला-तरंग उटाते हैं । अपनी नाद-सिद्धि से ऋतु-चक्र तक बदल देते हैं । अपने रागों से त्रिलोक को सम्मोहित कर लेते हैं। अपनी मांत्रिक स्वर-सिद्धि से एक ही क्षण में भोग और योग की संयुक्त सुखानुभूति करा देते हैं । दूरियों में रहकर भी असूर्यपश्या अन्तःपुरिकाओं के तन-मनों को अपनी सारस्वत मोहिनी से विकल कर देते हैं। राजबालाओं के अंगलि-पोरों में, अपने एक तंतु-दबाव से संवेदन और सौन्दर्य की नई रक्त लहर दौड़ा देते हैं, नया रोमांचन सिहरा देते हैं। मानवीय संवेदन के ये तांत्रिक, सिंहासनों और भद्रासनों के पादप्रान्तों में कीर्ति, गुण-ग्राहकता और सुवर्ण-मुद्राओं की साँकलें तोड़ देने के संघर्ष में ही दम तोड़ देते हैं।
· · ·मैं सुवर्ण भूमि और चम्पा के विस्तृत नदी-तटों में बसे मल्लाहों और धीवरों के ग्रामों में भी घूमा। ये सुदूर यवन देशों, पूर्वीय महादेशों, नील और पारस्य के पण्यों से, आर्यावर्त के महाराज्यों में, अपनी नादों और पोतों पर लादकर महामूल्य वस्तु-सम्पदाओं, और सुख-सामग्रियों का आयात-निर्यात करते हैं । इनके जल-विजयी अभियानों पर ही विश्व के वाणिज्य और राज्यत्व के उत्तंग प्रासाद खड़े हैं। इन्हीं की बदौलत सुलेमान की सुवर्ण-खदानों के सुवर्ण से मगध
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